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________________ शुक्ल ध्यान (२२१) योग का निरोध करना एवं शैलेशी अवस्था के काल के क्षीण होने पर कर्मो से मुक्त होकर सिद्धि को प्राप्त करना ही क्रमशः सूक्ष्मक्रियाअप्रतिपाती शुक्ल ध्यान एवं समुच्छिन्नक्रियनिवृत्ति शुक्ल ध्यान का फल है। इस प्रकार हम देखते हैं कि शुक्ल ध्यान में ही चित्त का निरोधपूर्ण रूप से होता है, चित्त की जितनी भी वत्तियां होती हैं वे इस ध्यान के द्वारा शान्त हो जाती हैं। इस ध्यान के द्वारा कर्मो का क्षय होता है और मन का आत्मा की सत्ता में विलय हो जाता है। शुक्ल ध्यान के द्वारा ही साधक अपनी आत्मिक अशुद्धियों को करके उन्हें पूरी तरह से शुद्ध करने में समर्थ हो जाता है। अतः शुक्ल ध्यान ही सर्वोत्कृष्ट तप है, समस्त धार्मिक क्रियाकलापों की यह चरम सीमा है । इस ध्यान की साधना के द्वारा साधक अपने चरम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। मोक्ष का वर्णन अगले परिच्छेद में किया जा रहा है । + तदियसुक्कझाणं जोगणिरोहफलं । सेलेसिय अद्धाए ज्झीणाए सव्वकम्मविप्पमुक्को एगसमएणसिद्धि गच्छदि । (षट्खण्डागम १३/५/४/२६/८८/१)
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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