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भारतीय परम्परा मे ध्यान (५)
उन्होंने स्वाध्याय, ध्यान एवं समाधि आदि को तप के अड ग रूप माना X, और जिन्होंने योग को मुख्य अड्.गी माना उन्होंने तप, ध्यान समाधि को उसके अड्.ग रूप माना ।.... वेदकालीन ध्यान परम्परा:
भारतीय संस्कृति में सबसे प्राचीन ग्रन्थ वेद कहे जाते हैं और वेदों में ऋग्वेद सबसे प्राचीन माना गया है। कहा जाता है कि इन वेद मन्त्रों को किसी भी ऋषि या मूनि ने स्वयं नहीं रचा अपितु ऋषि मन्त्रकर्ता नहीं मन्त्रद्रष्टा थे। इन मन्त्रों का भगवान् हिरण्यगर्भ ने ऋषियों को साक्षात्कार करवाया था। वेद मन्त्र रहस्यों से भरे हुए हैं उनके एक-एक पद अनेक भावों को प्रगट करते है । उन मन्त्रों को अगर गहराई से देखा जाये तो पता चलता है कि वहां ध्यान, तप, योग एवं समाधि से सम्बन्धित बहुत मात्रा में सामग्री है। इन्द्र, अग्नि, वरुण एवं सोम आदि देवताओं के वर्णन के पीछे आध्यात्मिकता का सार पाया जाता है। जो गहराई से सोचने पर ध्यान योग के अर्थ में निकलता है। मोहनजोदड़ों की खुदाई से प्राप्त एक मुद्रा पर अंकित चित्र में त्रिशल, मुकूटविन्यास नग्नता, कायोत्सर्गमुद्रा, नासाग्रदष्टि एवं ध्यानावस्था में लीन मूर्तियों से ऐसा सिद्ध होता है कि ये मूर्तियाँ किसी मूनि या योगी की हैं जो कि ध्यान में लीन हैं । * मोहनजोदड़ों का काल प्रागवैदिक है। वैदिक परम्परा में ध्यान का अस्तित्व चाहे तप के रूप में या योग के रूप में किसी न किसी प्रकार से अवश्य रहा है। उस काल में विद्वानों का कोई भी यज्ञ-कर्म बिना ध्यान योग के सिद्ध नहीं होता था।+ X जैन परम्परा में स्वाध्याय, ध्यान आदि आभ्यन्तर तप
अड्.ग हैं। .... तपः स्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि क्रियायोगः । (योगसूत्र २/१) * मोहनजोदारो एण्ड द इण्डस सिविलाइजेशन, जिन्द १ पृ. ५३ A हिस्ट्री ऑफ एन्शिएण्ट इण्डिया पृ. २५ + यस्माद्ऋते न सिभ्यति यज्ञो विपश्चितश्चन । स धीरो योगमन्वति (ऋग्वेद १/१८/७)