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________________ (२१८) जैन परम्परा में ध्यान का स्वरूप : एक समीक्षात्मक अध्ययन चारों शुक्ल ध्यानों में अन्तर : आचार्य अपराजितसूरि ने भगवती आराधना की विजयोदया टीका में इन चारों शुक्ल ध्यानों में अन्तर बतलाते हुए कहा है कि एकत्व वितर्कअवीचार शुक्ल ध्यान एक ही द्रव्य का आश्रय लेता है और जबकि पृथकत्ववितर्कवीचार में परिमित अनेक द्रव्यों एवं पर्यायों का आलम्बन लिया जाता है । तीसरा सूक्ष्मक्रिया अप्रतिपाती ध्यान और समुच्छिन्नक्रियअनिवृत्ति शुक्ल ध्यान सभी वस्तुओं को विषय करते हैं क्योंकि केवल ज्ञान का विषय सब द्रव्य और सब पर्याय हैं। पहले शुक्ल ध्यान का स्वामी उपशान्तमोह होता है जबकि दूसरे शुक्ल ध्यान का स्वामी क्षीणकषाय माना गया है । तीसरे शुक्ल ध्यान का सयोगकेवली कहा गया है जबकि चौथे शुक्ल ध्यान के स्वामी को अयोगकेवली कहा गया है । इस प्रकार हम देखते हैं कि द्रव्य पर्याय एवं स्वामी की अपेक्षा से दूसरा शुक्ल ध्यान विलक्षण है एवं सभी शेष तीनों ध्यानों से भिन्न है । इन भिन्नता के साथ-साथ इन ध्यानों में कुछ समानता भी है जैसे पहले शुक्ल ध्यान की तरह दूसरा ध्यान भी सवितर्क है | X शुक्ल ध्यानों के स्वामी : तत्त्वार्थ सूत्र में प्रथम दो शुक्ल ध्यानों का स्वामी श्रुतकेवली और अन्तिम दो शुक्ल ध्यानों के स्वामी केवली कहे गये हैं। + धवला में पृथक्त्ववितर्कवीचार शुक्ल ध्यान का ध्याता चौदह, दस अथवा नौ पूर्वों का धारक तीन प्रकार के प्रशस्त संहनन वाला उपशान्तकषाय x ( क ) भगवती आराधना, वि. टी., पृ. ८३७/४ (ख) जम्हा सुदं वितक्कं जम्हा पुव्वगदअत्थकुसलो य । ज्झायदि ज्झाणं एवं सवितक्कं तेण तं ज्झाणं ॥ अत्थाण वंजणाण य जोगाणं संकमो ह बीचारो । तस्म अभावेण तयं झाणं अविचारमिति वृत्तं ॥ (भगवती आराधना १७७८-७९ ) + शुक्ले चाद्यै पूर्वविदः । परेकेवलिनः । (तत्त्वार्थ सूत्र ६ / ३७-३८)
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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