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________________ भारतीय परम्परा में ध्यान [ ३ ] किया गया है..., उसमें ध्यान योग का छठे अध्याय में विस्तत रूप से उल्लेख किया गया हैं। पुराणों में भी कई जगह इसकी चर्चा मिलती है। योगवाशिष्ठ के छह प्रकरणों में योग व ध्यान की व्याख्या की गयी है,→ योग वाशिष्ठ को तो योग का ग्रन्थ राज कहते है। न्यायदर्शनA एवं वैशेषिक दर्शन- में इसका सम्यक् रूप से विवेचन किया गया है। ब्रहमसूत्र में महर्षि बादरायण ने तो तीसरे अध्याय का नाम ही साधन अध्याय रखा है और उसमें आसन ध्यान आदि का वर्णन किया गया है। हठयोग के अन्तर्गत हठयोग-सिद्धान्त की स्थापना करते हुए आदिनाथ ने योग की क्रियाओं के द्वारा मन की स्थिरता प्राप्त करने का परम गूढ़ रहस्य बतलाया है। हठयोग के अनेक ग्रन्थों में हठयोग प्रदीपिका मुख्य मानी गयी है। बौद्ध धर्म की परम्परा निवृत्ति प्रधान मानी गयी है क्योंकि यहाँ आचार, नीति, खान-पान, शील, प्रज्ञा एवं ध्यान आदि का विस्तृत रूप (क) श्री मद्भगवद्गीता में योग के अट्ठारह प्रकार इस तरह से हैं १- सयत्व योग, २- ज्ञान योग, ३- कर्मयोग, ४-दैव योग, ५- आत्मसंयम योग, ६- यज्ञ योग, ७- ब्रह्म योग, ८-सन्यास योग 8- ध्यान योग, १०- दुःखसंयोग वियोग-योग, ११- अभ्यास योग, १२- ऐश्वरी योग, १३- नित्याभियोग १४- शरणागति योग १५- सातत्य योग १६- बुद्धि योग १७- आत्म योग तथा १८- भक्ति योग। (ख) गीता में पहले के छह अध्याय कर्मयोग प्रधान, बीच के छह अधयाय भक्तियोग प्रधान तथा अन्तिम के छह अध्याय ज्ञान योग प्रधान हैं। x (क) भागवतपुराण ३/२८, ११/१५, १६/२० (ख) स्कन्धपुराण, भाग १, अध्याय ५५ → वैराग्य, मुमुक्षु व्यवहार,उत्पत्ति, स्थिति, उपशम एवं निर्वाण ये छह प्रकरण योग साधना प्रधान हैं। A समाधि विशेषाभ्यासात् । (न्यायदर्शन ४/२/३६) -~- वैशेषिक दर्शन ६/२/२ आसीनः संभवात् ४/१/७,ध्यानाञ्व४/१/८, अचलत्वं चापेक्ष्य ४/१/e स्मरन्ति च, ४/१/१०, यत्रैकाग्रता तत्राविशेषात् ४/१/११ (ब्रह्मसूत्र)
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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