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________________ [२) जैन परम्परा में ध्यान का स्वरूप : एक समीक्षात्मक अध्ययन उल्लेख मिलता है।+ ऐसा जान पड़ता है कि 'तप' शब्द योग या ध्यान का ही पर्याय रहा होगा। प्राचीन उपनिषदों को छोड़कर बाद के उपनिषदों में 'योग' शब्द आध्यात्मिक अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। सामान्यतः ऋग्वेद से उपनिषद् तक के साहित्य में 'तपस्' शब्द का आध्यात्मिक अर्थ में जितनी छट के साथ वर्णन किया गया है, उतना 'योग' शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है। 'तप' शब्द का प्रयोग 'ध्यान' तथा 'समाधि' के अर्थ में भी हुआ है । ऋग्वेद का बहमस्फुरण जैसे-जैसे विकसित होता गया और उपनिषद् के जमाने में उसने जैसे विस्तृत रूप धारण किया वैसे-वैसे ध्यान मार्ग भी अधिक पूष्ट और साड़.गोपाड.ग होता रहा । यही कारण है कि प्राचीन उपनिषदों में भी समाधि के अर्थ में योग, ध्यान आदि शब्द पाये जाते हैं। महाभारत में योग अथवा ध्यान का उल्लेख किया गया है । A श्री मद् भगवद्गीता के अट्ठारह अध्यायों में अट्ठारह प्रकार के योगों का वर्णन + (क) एत द्वै परमं तपो। अध्याहितः तप्यते परमं हयैव लोकं जयति । (शतपथब्राह्मण १४/८/११) (ख) अथर्ववेद ४/३५/१-२ [ग] ऐतरेयब्राह्मण २/२६/१ 18 (क) योग आत्मा। तैत्तिरीयोपनिषद् २/४ (ख) तां योगमिति मन्यन्ते स्थिरामिन्द्रिय धारणाम् । अप्रमत्तस्तदा भवति योगो हि प्रभवाप्ययौ ॥ (कठोपनिषद् (ग) -तत्कारणं सांख्ययोगाधिगम्य ज्ञात्वा देवं मुच्यते सर्वपाशैः । (श्वेताश्वतर उपनिषद् ६/१३) "- (क) तैत्तिरीय उपनिषद् २/४ (ख) श्वेताश्वतर २/११, ६/३ (ग) छान्दोग्य उपनिषद ७/६/१, ७/६/२, ७/७/२, ७/२६/२ (घ) कौशीतकि उपनिषद् ३/२, ३/३, ३/४, ३/६ A महाभारत-शांतिपर्व, अनुशासन पर्व ।
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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