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________________ अष्टम परिच्छेद शुक्ल ध्यान शक्ल ध्यान का लक्षण : शुक्ल ध्यान, योग ध्यान की सर्वोत्तम दशा है । इस ध्यान में चित्त की एकाग्रता और निरोध पूरी तरह से सम्पन्न होता है। साधक जिस लक्ष्य को लेकर योग मार्ग की प्रवृत्ति को अपनाता है वह उस लक्ष्य को प्राप्त करके पूर्णता को प्राप्त होता है। शुक्ल ध्यान के लिए अभी तक पूरी तरह से सामग्री प्राप्त नहीं हो पाई है, अत: आधुनिक लोगों के लिए उसका ध्यान असम्भव सा है । लेकिन परम्परानुसार उसका उल्लेख करना भी जरूरी माना गया है क्योंकि आचार्य हेमचन्द्र के अनुसार किसी भी व्यक्ति को परम्परा का विच्छेद नहीं करना चाहिए।+ "शुचं क्लमयतीति शुक्लम्" इस निरुक्ति के अनुसार जो ध्यान शोक आदि दोषों को दूर करने वाला है वह शक्ल ध्यान है। आत्मा की अत्यन्त विशुद्ध अवस्था को शुक्ल ध्यान कहते हैं । जो निष्क्रिय हैं, इन्द्रियातीत हैं और ध्यान की धारणा से रहित हैं अर्थात् "मैं इसका ध्यान करू” इरा इच्छा से रहित है, वह शुक्ल ध्यान है।- जिसमें शचि गृण का सम्बन्ध है वह शुक्ल ध्यान है... जिस प्रकार से मैल के धुल जाने पर वस्त्र साफ हो जाता है उसी प्रकार निर्मल गुणों से युक्त आत्मा की परिणति भी शुक्ल है ।* जहाँ गुण + योगशास्त्र ९१/३-४ शुचं क्लमयतीति शुक्लम, शोकं ग्ल पतीत्यर्थः । (ध्यानशतक, १, टी.) - निष्क्रिय करणातीतं ध्यानधारणजितम्। अन्तर्मुखं च यच्चित्त तच्छ वलमिति पठ्यते ।। (ज्ञानार्णव ४२/४) शुचिगुणयोगाच्छ क्लम् । (सर्वार्थसिद्धि ६/२८/४४५/११) * यथा मलद्रव्यापायात् शुचिगुणयोगाच्छु क्लं वस्त्र तथा तद्गुणसाध ादात्मपरिणामस्वरूपमपि शवलमिति निरुच्यते ॥ (राजवार्तिक ६/२८/४/६२७/३१)
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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