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________________ (१६जैन परम्परा में ध्यान का स्वरूप : एक समीक्षात्मक अध्ययन धर्म ध्यान के अन्य भेद : धर्म ध्यान के इन चार भेदों प्रभेदों के अलावा अन्य छ: भेद और भी बतलाये गये हैं, लेकिन इन भेदों का वर्णन हर जगह नहीं मिलता है ऐसे कुछ ही ग्रन्थ हैं जिन्होंने इनका स्वरूप दर्शाया है। + वे अन्य भेद कुछ इस प्रकार से हैं-उपाय विचय, जीव विचय, अजीव विचय, विराग विचय, भव विचय, हेतु विचय। उपाय विचय धर्म ध्यान : पुण्य रूप योग की प्रवृत्तियों को अपने आधीन करना उपाय कहलाता है और यह उपाय मेरे किस प्रकार से हो सकता है इस प्रकार के संकल्प को करके जो चिन्तवन होता है, वह उपाय विचय धर्मध्यान कहलाता है। मोक्षार्थी पुरुष अपने मन-वचन-काय को शुद्ध करने के लिए चिन्तन करते हैं कि किस प्रकार से मेरे मनवचन-काय शुभ हो जायेंगे और कैसे मेरे कर्मों का आस्व मकेगा, ऐसा ध्यान करना ही उपाय विचय धर्मध्यान है। जीव विचय धर्मध्यान : यह जीव ज्ञान दर्शन उपयोग वाला है। द्रव्याथिक नय से जीव अनादि अनिधन है। अपने द्वारा सम्पादित शुभाशुभ कर्मों का फल वह स्वयं भोगता है एव अपने द्वारा प्राप्त सूक्ष्म एवं स्थूल शरीर को + (क) हरिवंशपुराण ५६/३८-५० (ख) शास्त्रसार समुच्चय ५६ 1 उपाय विचयं तासां पूण्यानामात्मसात्क्रिया। उपायः स कथं मे स्यादिति सवरूप सन्ततिः ॥ (हरिवंश पुराण = (क) मनोवाक्काययोगादि प्रशस्तं में भवेत्कथम् । कर्मास्रवविनिष्क्रान्तं ध्यानेनाध्ययनेन वा ।। इत्यु'पायोऽत्र तच्छ द्धयै चिन्त्यते यो मुमुक्षुभिः । नानोपायैः श्रुताभ्यासरुपार्यावचयं हि तत् ।। (मूलाचार प्रदीप ६/२०४८-४६) (ख) चारित्रसार १७३/३
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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