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________________ धर्मध्यान का वर्गीकरण(१८७) को मस्तक कमल पर, 'आ' को कंठस्थ कमल में 'उ' को हृदय कमल पर एव 'सा' को मुखस्थ कमल पर ध्याने के लिये, ये स्थान निर्धारित किये गये हैं।+ ज्ञानार्णव में माया वणं 'ह्रों' का भी चिन्तवन करने के लिए कहा गया है । यह माया वर्ण चन्द्रमा की कान्ति के समान है। इस मन्त्र को देव दैत्य आदि सभी पूजते हैं। इसको ध्याने से साधक श्रीमत्सर्वज्ञ देव का प्रत्यक्ष दर्शन कर लेता है ।- एक अन्य विद्या 'क्ष्वी' का भी चिन्तवन करने का विधान है। इस विद्या को भाल प्रदेश पर स्थिर करके निश्चल मन से ध्यान करने पर साधक समस्त कल्याण के समूह को प्राप्त कर लेता है । इन मन्त्रों के अतिरिक्त और भी कई मन्त्र हैं । जिनके ध्यान से साधक मोक्ष पद को प्राप्त करता है । वे मन्त्र इस प्रकार से हैं'ॐ अहंत् सिद्ध सयोग केवली स्वाहा ।', 'ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमः ।', 'नमः सर्व सिद्धेभ्यः ।', 'ॐ जोग्गे मग्गे तच्चे भूदे भव्वे भविस्से अक्खे पक्खे जिणपारिस्से स्वाहा ।, ॐ ह्रीं स्वहं नमो नमोऽहंताणं ह्रीं नमः'। एवं 'नमो नाणस्स', 'नमो दसणस्स', 'नमो चरित्तस्स', 'नमोतवस्स'। 'एसो पंच णमोकारो, 'सव्व पावप्पणासणो', 'मंगलाणं च सव्वेसिं', 'पढमं हवइ मंगलं' इत्यादि। + स्मर मन्त्रपदाधीशं मुक्ति मार्ग प्रदीपकम् । नाभिपङकज संलीनमवर्णविश्वतोमुखम् ।। सिवर्ण मस्ताम्भोजे साकारं मुखपङ कजे । आकारं कण्ठकजस्थं स्मरोकारं हृदिस्थितम् ।। (ज्ञानार्णव ३८/१०८-१०६) -- प्रोद्यत्सपूर्ण चन्द्राभं चन्द्र बिम्बाच्छनै शनैः । समागच्छत्सुधाबीजं मायावणं तु चिन्तयेत् ॥ (ज्ञानार्णव ३८/६७-८०) x अविचलमनसा ध्यायल्ललाटदेशे स्थितामिमां देवीम् । प्राप्नोति मुनिरजस्र समस्तकल्याणनिकुरम्बम् ।। (वहो ३८/८२) विद्याक्ष्वाँ इति मालस्थां ध्यायेत्कल्याणकारकम् । (योगशास्त्र ८/५७)
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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