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________________ ( १८६ ) जैन परम्परा में ध्यान का स्वरूप : एक समीक्षात्मक अध्ययन "अरिहंत सिद्ध आयरिय उवज्झाय साहू" को सोलह अक्षरी मन्त्र कहा है 1+ 'अरहन्त सिद्ध' यह छह अक्षर वाला मन्त्र तीन सौ बार जपने से साधक एक उपवास के फल को प्राप्त करता है । चार अक्षर वाला मन्त्र 'अरहन्त' माना गया है जो धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष रूप फल को देने वाला है । दो अक्षरों का मन्त्र है- 'सिद्ध' जो समस्त क्लेशों का नाश करके मोक्ष को देने वाला है तथा एकाक्षरी मन्त्र 'अ' है जो पाँच सौ बार जपने से एक उपवास का फल देता है । - इसी प्रकार 'ॐ ह्रां ह्रीं हूँ ह्रीं इ :' 'अ सि आ उ सा नमः' ये पाँच अक्षरी विद्या के निरन्तर अभ्यास से साधक मन को वश में करके संसार रूपी बन्धन को शीघ्र काट देता है एवं एकाग्र चित्त से मंगल, उत्तम पदों का जप करता हुआ मोक्ष को प्राप्त करता है। ... साधक को मन्त्र पदों के स्वामी 'अ सि आ उसा' को ज्योतिषमान् रूप में ध्याने के लिए कहा गया है । वे 'अ' को अरहन्त, 'सि' को सिद्ध, 'आ' को बाचार्य, 'उ' को उपाध्याय, 'सा' को साधु मानते हैं । * इनको ध्याने के लिए 'अ' अक्षर को नाभि कमल में, 'सि' + वृहद्रव्यसंग्रह, पृ० २०३ विद्यां षड्वर्गसम्भूतामजय्यां पुण्यशालिनीम् । जपन्प्रागुक्तमभ्येति फलं ध्यानी शतत्रयम् ।। (ज्ञानार्णव ३८ / ५० ) - ... (क) वही ३८ / ५२-५३ (ख) वृहद्रव्यसंग्रह, टी० ४६ (क) पंचवर्णमयी पंचतत्त्वा विद्याद्धृता श्रुताम् । अभ्यस्यमाना सततं भवक्लेशं निरस्यति । मंगलोत्तम - शरण - पदान्यव्यग्र - मानसः । चतुश्रमाश्रमाण्येव स्मरन् मोक्षम् प्रपद्यते ।। (योगशास्त्र ८/४१-४२) (ख) पंचवर्णमयीं विद्यां पञ्चतस्वोपलक्षिताम् । मुनिवीरैः श्रुतस्कन्धाजबीबुद्ध्या समुद्धृताम्।। (ज्ञानाणंव ३८ / ५५-५७) * हृत्पंकजे चतुष्पत्रे ज्योतिष्मन्ति प्रदक्षिणम् । अ-सि-आ-उ-साऽक्षराणि ध्यैमानि परमेष्ठिनाम्॥(तत्त्वानशासन १०२ )
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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