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________________ धर्मध्यान का वर्गीकरण (१८५) जाता है, किन्तु एक बात और गौर करने वाली है वह यह कि इस पद में पृथ्वी एवं जल तत्त्व भी काफी मात्रा में स्थित है इसलिए इस पद का वर्ण एकदम काला न मानकर कस्तूरी के समान माना गया है । यद्यपि साधारणतया लोक मान्यता के अनुसार श्याम रंग अप्रशस्त माना गया है किन्तु योग ध्यान की विधि में श्याम रंग को बहुत अधिक महत्व दिया गया है । इस पद के ध्यान से साधक इन्द्रिय एवम् मनोविजेता बन जाता है जिससे उसकी प्राणधारा शुद्ध होती है और चेतना धारा का ऊर्ध्वारोहण होता है । इस प्रकार इन नवकार मन्त्र की साधना से साधक अपने सभी कर्मों का क्षय करके, दिव्य शक्ति को विकसित करके एवं ज्ञान शक्ति का विकास करके, आचार शुद्धि करके एवं स्मरण शक्ति को प्रखर बनाकर, काम वासना आदि की इच्छा को समाप्त करके, अतीन्द्रिय ज्ञान एवं प्रतिभा को प्राप्त करता है एवं अमृत के तुल्य अनुपम रस का पान करता है । वृहद्रव्य संग्रह में इस मन्त्र को पैंतीस अक्षरों वाला मंत्र पद माना गया है जिसे णमोकारमंत्र, मूल मन्त्र तथा अपराजित मन्त्र भी कहा गया है । इन मन्त्रों के अतिरिक्त और भी ऐसे कई मन्त्र हैं जिनका नित्य जप करने से साधक को शान्ति की प्राप्ति होती है एवं उसके कर्मों का क्षय होता है । इन्हीं मन्त्रों में एक सोलह अक्षरों वाले एक मन्त्र को सोलह अक्षरी विद्या कहकर उसका ध्यान करने के लिए साधक से कहा गया है । वह सोलह अक्षरी विद्या यह है"अहत्सिद्धाचार्योपाध्यायसवं साधुभ्यो नमः ।" इस विद्या को एकाग्रचित होकर दो सौ बार जाने से एक उपवास का फल मिलता है। वृहद्रव्यसंग्रह में सोलह वर्ण वाला पद या मन्त्र दूसरा ही कहा गया है वहाँ + पण तीम सोल छप्पण चदु दुगमेगं च जवह झाएह । परमेट्ठिवाचयाणं अण्ण चं गुरुवए सेण । ( वृहद्रव्य संग्रह ४६) स्मर पञ्चपदोद्भूतां महाविद्यां जगन्नुताम् । गुरुपञ्चक नामोत्थां षोडशाक्षरराजिताम् ३८/४८-४९) 11 ( ज्ञानार्णव
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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