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(१८४)मैन परम्परा में ध्यान का स्वरूप : एक समीक्षात्मक अध्ययन
णमो आयरियाणं :
___ इस पद के पांच वर्ण अनुनामिक हैं। इसमें णमो' और ण' आकाश तत्त्व के अन्तर्गत आते हैं । 'आ' 'य' और 'या' वायु तत्व हैं तथा 'रि' अग्नि तत्त्व है । अर्थात् इस पद में वायु, आकाश एव अग्नि तत्त्व मौजद हैं। मंत्रशास्त्रों में इस पद का रंग पीला माना गया है, इसीलिए साधक को इसकी साधना पीले रंग में करनी चाहिये। पीला रंग ज्ञानवाही तन्तुओं को और अधिक संवेदनशील करके शक्तिशाली बनाता है। इस पद में पाँच नासिक्य अर्थान् अनुनासिक स्वरों के होने से इसकी महत्ता अत्यधिक बढ़ जाती है। साधारण मन्त्रों की अपेक्षा ये मन्त्र जपने से साधक के मन मस्तिष्क में सहस्त्रगुनी ऊर्जा उत्पन्न होती है। णमो उवज्झायाणं :
इस पद में 'णमो' एवं ण' आकाश तत्त्व हैं तथा 'उ' और ' पृथ्वी तत्त्व के अन्तर्गत आते हैं । जल तत्व 'व' एवं 'झा' हैं तथा 'य' वायु तत्त्व है। इस प्रकार हम देखते हैं कि इस पद में आकाश, पथ्वी, जल एवं वायु तत्व के रूप में चार तत्व मौजूद हैं लेकिन शेष एक अग्नि तत्व मौजद नहीं है इसीलिए यह पद साधक को अत्यधिक शीतलता प्रदान करने वाला है। इन चारों तत्त्वों के एक साथ मौजद होने से इस पद का रंग आकाश की भाँति हल्का नीला माना गया है। साधक को इस रग को ध्यान में रखकर ही इसकी साधना करनी चाहिये। यह पद साधक में क्षमाशीलता के भाव का विकास करता है णमो लोए सव्वासाहणं :
तत्त्व की दष्टि से इस पद में णमो' 'ह' एवं 'ण' ये आकाश तत्त्व हैं, और 'लो' पृथ्वी तत्त्व है । वाय तत्त्व के अन्तर्गत 'ए' वर्ण आता है तथा जल तत्त्व 'स', 'व्व', 'सा' वर्ण हैं, अर्थात इस पद में आकाश, वायु. जल एवं पृथ्वी ये चार तत्त्व आते हैं लेकिन आकाश तत्त्व की अधिकता है क्योंकि इसमें आकाश तत्त्व के चार वर्ण मौजूद हैं। इसलिए इस तत्त्व की अधिकता से एवं ज्यादा प्रभाव होने के कारण इस पद का रंग काला माना गया है क्योंकि आकाश का रंग भी गहरा नीला या काला माना