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धर्मध्यान का वर्गीकरण(१८३)
तत्त्व मौजूद हैं । अग्नि तत्त्व अशुभ कर्मो को निर्जरा करता है और वायु तत्त्व निर्जरा किये हुए कर्मों की राख को उड़ाकर साफ कर देता है और आकाश तत्त्व साधक के चारों ओर एक कवच का निर्माण करके उसकी शक्ति को बढ़ाता है जिससे सांसारिक विकार उसकी आत्मा, मन और शरीर में प्रवेश न कर सके।
मन्त्रशास्त्रों में इस पद का रंग श्वेत बतलाया गया है और साधक को इसी रंग को ध्यान में रखकर इस पद का ध्यान करना चाहिये क्योंकि श्वेत रंग शान्ति, समता, शुभ्रता एवं सात्त्विकता आदि का प्रतीक माना गया है।
आचार्य शुभचन्द्र ने भी इस सात अक्षर वाले "णमो अरहंताण" पद का ध्यान करने के लिए कहा है कि जो प्राणी इस संसार रूपी अग्नि से दुखी हैं उन्हें इस पद का ध्यान करना चाहिये । णमो सिद्धाण :
मंत्रशास्त्र की दष्टि से ये बीजाक्षर है। तत्त्व की दृष्टि से 'णमो" और “ण” आकाश तत्त्व, "स" और "द" जल तत्व, "ध'' पृथ्वी तत्व और “इ” अग्नि तत्व माना गया है इस प्रकार से इस पद में पृथ्वी. अग्नि, जल और आकाश ये चारों तत्व मौजूद हैं। इस पद में दो नासिक्य अर्थात अनुनासिक वर्ण भी हैं, मंत्रशास्त्र में अनुनासिक वर्गों का बहत अधिक महत्व माना गया है, क्योंकि इन वर्गों के उच्चारण के समय ध्वनि तरंगे सीधी ब्रह्मरंध्र तथा मस्तिष्क के ज्ञानवाही और क्रियाशील तन्तुओं से टकराती है जो अत्यधिक शक्ति को उत्पन्न करने वाले होते हैं । इस पद में “ण” एवं अनुस्वार (') ये दोनों विशिष्ट शक्ति को उत्पन्न करते हैं । इस पद में 'ध' वर्ण धारण शक्ति को प्रबल करता है और 'द' दमन, दान आदि की ओर इशारा करता है। इस पद में जल तत्त्व होने के कारण यह शीतलता को प्रदान करता है। साधक को इस पद का ध्यान लाल रंग में करना चाहिए।
यदि साक्षात्समुश्विग्नो जन्मदावोग्रसंक्रमात्।। तदा स्मरादिमन्त्रस्य प्राचीनं वर्ण सप्तकम् ॥ (ज्ञानार्णव ३८/८५)