SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्मध्यान का वर्गीकरण [१८१ उठते-बैठते, चलते-फिरते मन्त्र है और इसे साधक किसी भी वक्त किसी भी अवस्था में जप सकता है । पंचपरमेष्ठी नामक ध्यान में साधक चिन्तवन करता है कि मेरे हृदय में आठ पाँखुड़ियों से विभूषित एक कमल है । उस कमल की कणिका पर "णमो अरहंताणं" नामक सात अक्षरों का मन्त्र लिखा है, तत्पश्चात् उस कणिका के बाहर के आठ पत्रों में से चार दिशाओं के चार दलों पर क्रमशः ' णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाण, णमो लोए सव्वमहूणं" का ध्यान किया जाता है तथा चार बिदिशाओं पत्रों पर क्रमशः "एसो पंचणमुक्कारो सव्वपावप्पणासणो, मंगलाणं च सव्वेसि पढमं हवइ मगलम् " का चिन्तवन किया जाता है । आचार्य शुभचन्द्र ने पहले चार पदों पर तो णमों अरहंताणं आदि को ध्याने के लिए बताया है परन्तु अन्य चार विदिशाओं के चार पत्रों पर क्रमशः सम्यग्दर्शनाय नमः, सम्यग्ज्ञानाय नमः, सम्यक्चारित्राय नमः, सम्यक्तपसे नमः, इन चार नमस्कार मन्त्रों के चिन्तवन करने को कहा है। इस प्रकार अष्टदल कमल और एक कणिका में नव मन्त्रों को स्थापित करके उनका ध्यान किया जाता है । इस महामन्त्र का प्रभाव योगी मुनियों के लिए भी अगोचर एवं अनभिज्ञ होता है । + यही महामन्त्र सबका रक्षक माना गया है । - अष्टपत्रे सिताम्भोजे कणिकायां कृतस्थितिम् । आद्यं सप्ताक्षर मन्त्रं पवित्रं चिन्तयेत्ततः ।। सिद्धादिक-चतुष्कं च दिक्पतेषु यथाक्रमम् । चूलापाद-चतुष्कं च विदिक्पत्रेषु चिन्तयेत् ।। (योगशास्त्र ८ / ३३-३४) स्फुरद्विमलचन्द्राभे दलाष्टकविभूषिते । कञ्जे तत्कणिकासीनं मन्त्रं सप्ताक्षरं स्मरेत् ॥ दिलेषु ततोऽन्येषु विदिक्पत्रेष्वनुक्रमात् । सिद्धादिकं चतुष्कं च दृष्टिबोधादिक तथा ।। (ज्ञानार्णव ३८ / ३६ -४० ) + प्रभावमस्य निःशेषं योगिनामप्यगोचरम् । अनभिज्ञो जनो ब्रूते यः स मन्येऽनिलादितः ॥ ( ज्ञानार्णव ३८ / ४२ )
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy