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________________ (१८०) जैन परम्परा में ध्यान का स्वरूप : एक समीक्षात्मक अध्ययन इस ध्यान का साधक सबसे पहले हदय कमल में स्थित कर्णिका में इस पद की स्थापना करता है, तथा देव व दैत्यों से पृजित एवं वचन विलास की उत्पत्ति के अद्वितीय कारण, स्वर तथा व्यञ्जन से युक्त, पंचपरमेष्ठी के वाचक, मूर्धा में स्थित चन्द्र व ला से झरने वाले अमत के रस से आद्रित इस महातत्त्व, महाबीज, महामंत्र, महापदस्वरूप "ॐ" को कुम्भक करके ध्याता है । "ॐ" की साधना विभिन्न रंगों के साथ की जाती है। श्वेत वर्ण वाले 'ॐ' की साधना शान्ति, पुष्टि कर्मों को क्षय करने वाला एवं मोक्ष को देने वाली होती है। पीले रंग के "ॐ' का जप ध्यान ज्ञान तन्तुओं को सक्रिय बनाने के लिए किया जाता है । वशीकरण के लिए लाल रंग के ॐ' का ध्यान किया जाता है। नीले रंग की साधना साधक को शान्ति प्रदान करती है तथा श्याम वर्ण के 'ॐ' की साधना साधक को कष्टसहिष्णु बनाती है।इस प्रणव ॐ का ध्यान सांसारिक वैभव एवं सुखों के साथ-साथ मोक्ष को भी देने वाला होता है।... ॐ की साधना का महत्त्व इसलिए भी अधिक माना गया है क्योंकि यह पंचपरमेष्ठी वाचक एक अक्षर का (क) ज्ञानाणव ३८/३३-३५ (ख) तथाहत्पद्ममध्यस्थं शब्द ब्रह्म ककारणम् । स्वर व्यंजन-संवीतं वाचकं परमेष्ठिनः ।। मूर्ध-संस्थित-शीतांशु कलामतरस-प्लुतम् । कुम्भकेन महामन्त्रं प्रणव परिचिन्तयेत् ॥ (योगशास्त्र ८/२६-३०) -- (क) सान्द्रसि दूरवर्णाभं यदि वा विद्रुमप्रभम् । चिन्त्यमानं जगत्सवं क्षोभयत्यभिसंगतम् ।। जाम्बूनदनिभम् स्तम्भे विद्वषे कज्जलविषम् । ध्येयं वश्यादिके रक्तं चन्द्राभं कर्म शातने ॥ (ज्ञानार्णव ३५/३६-३७) (ख) पोतं स्तम्भेऽरुण वश्ये क्षोभणे विद्रुमप्रभम् । कृष्णं विद्वोषणे ध्यायेत् कर्मघाते शशिप्रभम् ॥ (योगशास्त्र८/३१) ... ॐ कारं विन्दु संयुक्तं नित्यं ध्यायन्ति योगिनः। कामदं मोक्षदं चैव ओंकाराय नमो नमः ॥
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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