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________________ - धर्मध्यान का वर्गीकरण(१७७) ये आठ वर्ण अन्कित हैं। अपने-अपने मण्डलों में विद्यमान अकार से हकार तक के परम शक्ति सम्पन्न मन्त्रों का ध्यान करने से ये मन्त्र इहलोक और परलोक में फल देने वाले होते हैं। + मन्त्रों व पदों का स्वामी एवं सभी तत्वों का नायक "अह" माना गया है जिसके आदि में वाड.मय अर्थात वर्णभाला का पहला अक्षर "अ" मध्य में मध्याक्षर "र" और अन्त में अन्तिम अक्षर "ह" है। इस तरह जो सारे वाड्.मय को अपने में व्याप्त कर "अक्षर ब्रह्म" है वह "शब्द ब्रह्म" भी कहलाता है। "अहैं" इस परम ब्रह्म के वाचक अक्षर ब्रह्म में "अ" अक्षर साक्षात् अमतमयमूर्ति के रूप में स्थित सुख का कर्ता है, स्फुरायमान रेफ (') अक्षर अविकल रत्नत्रय-सम्यदर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र की प्रतिमूर्ति है और "ह"अक्षर मोहसहित और पाप समूह के हंता का रूप धारण किये हुए है। - "अहं''यह बीजाक्षर अनाहत सहित मन्त्रराज कहलाता है।* + अकरादि-हकारान्ता: मंत्रा: परमशक्तयः । स्वमण्डल-गता: ध्येया लोकन्य फलप्रदाः ।। (तत्त्वानुशासन १०७) अकारादि-हकरान्ता वर्णा मन्त्राः प्रकीर्तिताः। सर्व रसहाया वा संयुक्ता वा परस्परम् ।। (विद्यानुशासन २-३) 18 (क) आदौ मध्ये ऽवसाने यद्वाड्.मयं व्याप्न्य तिष्ठति । हृदि ज्योतिष्मदृद्गच्छन्नामध्येयं तदर्हताम्।। (तत्त्वानुशासन १०१) (ख) अहमित्यक्षरं ब्रह्म वाचकं परमेष्ठिनः । सिद्ध चक्रस्य सदबीजं सर्वतः प्रणमाम्यहम् ।। (वही प. १०.) - अकरादि-हकारान्त-रेफमध्यान्त बिन्दुकं । ध्यायन् परमिदं बीज मुवत्यर्थी नाऽवसीदति ।। (आर्ष २१/२३१) * अथमन्त्रपदाधीशं सर्वतत्त्वैकनायकम् ।। आदि मध्यान्तभेदेन स्वरव्यञ्जनसम्भवम् ।। ऊधिोरेफसरुद्धं सपर बिन्दुलाञ्छितम् । अनाहत युतं तत्त्वं मन्त्रराज प्रचक्षते ।। (ज्ञानार्णव ३८/७-८) [ख] बिन्दाकारहरोर्ध्वरेफ बिन्द्वानवाक्षरम् । मालाधःस्यन्दि पीयूष बिन्दु विदुरनाहतम्। तत्त्वानुशासन१०८) (ग) अनाहत का आकार-इसमें १-उकार, २.अनुस्वार, ३-ईकार, ४-ऊद्ध वरकार, ५-हकार, ६-हकार, ७-निम्न स्कार, ८-अनस्वार, ६-ईकार । ये नौ अक्षर मिले हैं। (ज्ञानार्णव पृ. ३८६, ३६९)
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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