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धर्मध्यान का वर्गीकरण(१६७) स्वर्ग लोक में कल्प और कल्पातीत नामक दो पटल, । इन्द्र व सामानिक आदि १० कल्पनाओं से यक्त देव कल्पवासी कहलाते हैं कल्पनाओं से रहित अहमिन्द्र कल्पातीत विमानवासी कहलाते हैं । इस लोक में दो स्वर्ग के ऊपर दो स्वर्ग, फिर उन दो स्वर्ग के ऊपर फिर दो स्वर्ग, इस प्रकार से दो-दो के आठ युगल हैं और उनके ऊपर एक-एक विमान करके नौ विमान हैं। + जो ग्रेवेवक विमान कहलाते हैं । स्वर्ग लोक में रात्रि और दिन का कोई प्रावधान नहीं है वहां तो रत्नों से ही हमेशा प्रकाश रहता है । वहाँ उत्पात, भय, संताप, चोर आदि जीव स्वप्न में भी नहीं दीखते । स्वर्ग लोक में हर प्रकार का ऐश्वर्य एवं वैभव है वहाँ सभी प्रकार के भोग विलास के साधन मौजद हैं वहाँ पर कोई भी दीन दुखी नहीं है बल्कि सभी पुष्ट एवं दिव्य शरीर वाले देव हैं । स्वर्ग लोक के ऊपर जो सिद्ध लोक है वहाँ अहमिन्द्र नाम वाले देव रहते हैं। ये देव काम से रहित होते हैं इन देवों का शुभ ध्यान हमेशा बढ़ता रहता है ये देव शुक्ल लेश्या से युक्त होते हैं। -
संस्थान विचय धर्म ध्यान में लोकों का चिन्तन किया जाता है इसलिए यहां हमने लोकों का संक्षिप्त रूप से वर्णन करना उपयुक्त समझा।
___ आगमों के उत्तरवर्ती साहित्य में ध्यान के चतुष्ट य का दूसरा वर्गीकरण भी प्राप्त होता है। किसी भी साधक का ध्यान एकाएक निरालम्ब वस्तु में नहीं लग सकता, इसलिए स्थल एवं इन्द्रियगोचर पदार्थों से सूक्ष्म इन्द्रियों के अगोचर पदार्थों का + उपर्यु परि देवेशनिवास युगल क्रमात् ।
अच्युत न्त ततोऽप्यूर्ध्वमेकैक त्रिदशास्पदम् ॥ (वही ३६/६०) र उत्पातभयसन्ताप भड्.य चौरारिविद्धराः । न हि स्वप्नेऽपि दृश्यन्ते क्षुद्रसत्वाश्च दुर्जनाः ॥ [वही
३६/६३] - अहमिन्द्राभिधानास्ते प्रवीचारविजिताः । विद्धितशुभध्यानाः शुक्ललेश्याबलम्बिनः ॥ [ज्ञानार्णव ३६/१७६]