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________________ धर्मध्यान का वर्गीकरण(१५६) ३-विपाक यिचय धर्म ध्यान :___ "विपाक" का अभिप्राय कर्म फल से है । कर्म फल शुभ-अशुभ दोनों ही प्रकार के होते हैं और इन कर्म फल के चिन्तन को विपाक विच य कहते हैं । + इस ध्यान में साधक विचार करता है कि कर्म ही उदय में आने पर द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव का आश्रय पाकर ज्ञान दर्शन को परिष्कृत करके शुभ और अशुभ फल देते हैं । कर्मों की इस विचित्रता पर विचार करके उसके क्षण प्रति क्षण उदय होने की प्रक्रिया पर चिन्तन करना विपाक विचय धर्म ध्यान कहलाता है । - कर्मों के शुभ अशुभ फल का एवं उदय, उदीरणा, सक्रम, बन्ध और मोक्ष का विचार करना भी विपाक विचय धर्म ध्यान है।" षटखण्डागम में शुभ अशुभ को प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश से चार भेद वाला बताते हुए उनके चिन्तन को विपाक विचय धम ध्यान बतलाया है । A + पयइ-ठिइ-पएसा ऽणुभाव भिन्नं सुहासुहविहत्त। जोगाण भावजणियं कम्मविवागं विचितेज्जा ।। (ध्यानशतक ५१) (क) द्रव्यादि प्रत्ययं कर्मफलानुभवनं प्रति । भवति प्राणिधान यद् विपाक विच यस्तु सः ।। (तत्वार्थ सार ४२) (ख) कमंजातं फलं दत्ते विचित्रमिह देहिनाम् । आसाद्य नियतं नाम द्रव्यादिक चतुष्ट्यम् ॥ (ज्ञानार्णव ३५/२) - आदिपुराण २१/१४३-१४६, ज्ञानार्णव ३५/१ ... एयाणेय भवगदं जीवाणं पुण्णपावकम्मफलं । उदओदीरण संक्रमबंधे मोक्खं च विचिणादि। (भगवती आराधना, विजयोदया टी०, १७०८) A पयडिट्ठिदिप्पदेसाणु भागभिण्णं सुहासुहविहत्तं । जोगाणुभागजणियं कम्मविवागं विचितेज्जो। (षट्खण्डागम, घ.टी. १३/५/४/२६/४१)
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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