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जैन परम्परा में ध्यान का स्वरूप : एक समीक्षात्मक अध्ययन [१५४]
वे चार इस प्रकार हैं-१-आज्ञा विचय धर्म ध्यान, २अपाय विचय धर्म ध्यान, ३-विधाक विचय धर्म ध्यान, ४-संस्थान विचय धर्म ध्यान । इनके अलावा अन्य अनेक ग्रन्थों में भी धर्मध्यान के चार भेदों को स्वीकारा गया है । + लेकिन इन सब से अलग अनेक ग्रन्थों में धर्म ध्यान के दश प्रकार देखने को मिलते हैं ऐसे अनेक ग्रन्थ हैं जिन्होंने धर्म ध्यान के दस भेदों को स्वीकार करते हुए उनका वर्णन किया है। हरिबंश पुराण में धर्मध्यान के दस भेदों का उल्लेख किया गया है। वे दस भेद इस प्रकार हैं-१-अपाय विचय, २. उपाय विचय, ३-जीव विचय, ४-अजीव विचय, ५-विपाक विचय, ६विराग विचय, ७-भव विचय,८-संस्थान विचय, ह-आज्ञा विचय तथा १०-हेतु विचय ।
+ [क] तदाज्ञापाय-संस्थान-विपाक विचयात्मकम् ।
चतुर्विकल्पमाम्नातं ध्यानमाम्नाय वेदिभिः ।। (आर्ष २१/१३४) [ख] तत्थ धम्मज्झाणं ज्झेय भेदेण चम्विहं होदि-आणा विचओ
अपाय विचओ विवागविचओ संठाणविचओ चेदि । (षट्खंडा
गमः, धवला टो., पृ० १३, पृ० ७०) [ग] धम्मे झाणे चउविहे चउप्पडोयारे पण्णत्ता तं जहा-आमाविजये
अवायविजये विवाग विजये संठाणविजये । (स्थानाड्.ग,
पृ० १८८) [घ] आदिपुराण २१/१३४ [क] धर्मध्यानं दशविधम् । (शास्त्रसार समुच्चय ५६) [ख] भावपाहुड़, टीका। १६/२०७/२ (ग) अपायविचयं ध्यानमुपायविचयं ततः जीवादिवियध्यानमजीव
विचयाह्वयम् विपाकविचयं ध्यानं विराग विच यंमहत्। भावादि विचयं ध्यानं संस्थान-विचयाभिधम् तथाज्ञाविचयंहेतु विचयाख्यमिति स्फुटम् । धर्मध्यानं महाधर्माकरं दशविधं महत् ॥ (मूलाचार प्रदीप
६/२०, ४३-४५) - हरिवंशपुराण ५६/३८-५०