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________________ सप्तम परिच्छेद धर्मध्यान का वर्गीकरण धर्म ध्यान के भेद : नय दृष्टि से ध्यान दो प्रकार का माना गया है + -१सालम्बन व २-निरालम्बन । सालम्बन अर्थात् इसमें किसी वस्तु का आश्रय लिया जाता है । सालम्बन ध्यान भेदात्मक रूप में होता है और उसमें ध्यान और ध्येय को अलग-अलग माना गया है। आलम्बन के अनुसार धर्म ध्यान को चार प्रकार का माना गया है । आचार्य शुभचन्द्र जी महाराज ने भी धर्म ध्यान के चार भेदों का वर्णन किया है । = चित्त की एकाग्रता के साथ धर्मध्यान के चार प्रकारों का चिन्तन करना चाहिये । * तत्वार्थ सूत्र में भी धर्म ध्यान के निमित्त से चार ही प्रकारों का उल्लेख किया गया है ।x + तत्त्वानुशासन ६६ (क) आज्ञापाय विपाकानां, संस्थानस्य चिन्तनात् । इत्थं वा ध्येय भेदेन, धम्यं ध्यानं चतुर्विधम् ॥ योग शास्त्र १०/७) (ख) भगवती आराधना, मूल, १७०८, १५३६ (ग) महापुराण २१/१३४ (घ) द्रव्यसंग्रह, टाका ४८/२०२/३ (ड.) कार्तिकेयानुप्रेक्षा, टीका ४८०/३६६/४ = आज्ञापाय विपाकानां क्रमशः संस्थितेस्तथा। विचयो यः पृथक् तद्धि धर्मध्यानं चतुर्विधम् । (ज्ञानार्णव * आज्ञाऽपायौ विपाकं च संस्थानं भुवनस्य च । यथागममविक्षिप्त-चेतसा चिन्तयेन्मुनिः ॥ (तत्त्वानुशासन ६८) x आज्ञापाय विपाक संस्थान विचयाय धर्म्यम् ॥ (तत्वार्थ सूत्र
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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