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( १२ ) १४४.१४५, काल १४५, आसन १४५, आलम्बन १४६, क्रम १४६, ध्यातव्य या ध्येय १४७, ध्याता १४७, अनप्रक्षा १४८-१४६., लेश्या १४६-१५०, लिङ्ग १५१, फल १५१-१५२।।
सप्तम परिच्छेद : धर्मध्यान का वर्गीकरण धर्मध्यान के भेद १५३-१५४, आज्ञाविचय धर्म ध्यान १५५१५७, अपाय विचय धर्मध्यान १५७-१५६, विपाक विचय धर्मध्यान १५६-१६०, संस्थान विनय धर्मध्यान १६१-१६२, लोक १६३-१६७, धर्मध्यान का दूसरा वर्गीकरण १६७-१६६, पिण्डस्थ ध्यान१६६-१७०, पाँच धारणाये १७०-१७५, पदस्थ ध्यान १७५-१८८, रूपस्थ ध्यान १८८-१६०, रूपातीत ध्यान १६०-१६१, धर्मध्यान के अन्य भेद १६२, उपाय विचय धर्मध्यान १६२, जाव विचय धर्मध्यान : ६२-१६३, अजीव विचय धर्मध्यान १९३, विराग विचय धर्मध्यान १६३-१६४, भव विचय धर्मध्यान १६४, हेतु विचय धर्मध्यान १९४-१६५, धर्मध्यान के गुणस्थान एवं स्वामी १९५-१६७ ।
__ अष्टम परिच्छेद : शुक्ल ध्यान शक्ल घ्यान का लक्षण १६८-२००, शुक्ल ध्यान की मर्यादाये २००, आलम्बन २००-२०१, क्रम २०१-२०२, ध्येय २०२. ध्याता २०२, अनुप्रेक्षा २०२-२०४, लेश्या २०४, शुक्ल ध्यान के लिङ्ग २०४-२०५, फल २०५, शुक्ल ध्यान के भेद २०६-२०८, पृथक्त्व वितर्क वीचार शुक्ल घ्यान २०८-२११, एकत्व वितर्क अवीचार शुक्ल ध्यान २११-२१३, सूक्ष्म क्रिया प्रतिपाती शुक्ल ध्यान २१३-२१५, समूच्छिन्न क्रिया निवृत्ति शक्ल ध्यान २१५-२१७, चारों शुक्ल घ्यानों में अन्तर २१८, शुक्ल ध्यानों के स्वामी २१८-२२०, शुक्ल ध्यान का फल २२०-२२१।
नवम परिच्छेद : ध्यान का लक्ष्य-ल ब्धियाँ एवं मोक्ष
ध्यान एवं गुणस्थान २२२-२२६, घ्यान का लक्ष्य : लब्धियाँ २२६-२२७, वैदिक परम्परा में लब्धियाँ २२७-२२८, योगदर्शन में लब्धियाँ २२८-२२६, बौद्ध दर्शन में लब्धियाँ २२६-२३०, जैन दर्शन में लब्धियाँ २३०-२३१, लब्धियों के प्रकार २३१-२३७,