________________
अहिंसा महानत की पाँच भावनाये ७४-७५, सत्य महाव्रत ७५-७६, सत्य महाव्रत की पाँच भावनाये ७६-७७, अचौर्य महाव्रत ७६, अचौर्य महावत की पाँच भावनाये ७८-८०, ब्रह्मचर्य महाव्रत ८०, ब्रह्मचर्य महाव्रत को पाँच भावनाये ८०-८१, अपरिग्रह महाव्रत ८१-८२, अपरिग्रह महाव्रत की पाँच भावनाये ८२-८३, इन्द्रिय निग्रह ८३-८४, मनोनिग्रह ८४-८५, ध्यान और अनुप्रेक्षा ८५-८७, अनुप्रक्षा के भेद, ८७-६७, ध्यान के योग्य आसन ९७-१०२, ध्यान और प्राणायाम १०२-१०४, ध्यान व समत्व १०४-१०५, ध्यान मिद्धि के हेतु १०५-१०६, सम्यग्दर्शन १०६-१०८, सम्यग्ज्ञान १०८-१०६, सम्यक चारित्र १०१-११०।।
चतुर्थ परिच्छेद : ध्यान के भेद द्विविध व चतुर्विध वर्गीकरण १११-११३, आर्तध्यान ११३-११४, आत ध्यान के भेद ११४-११५, इष्ट वियोगज आर्तध्यान ११५, अनिष्ट संयोगज आर्त ध्यान ११५-११६, प्रतिकूल वेदना या रोगात्तं ध्यान ११६, निदान आत्तं ध्यान ११७, आत ध्यान के अनन्त भेद ११८, आर्त ध्यान के लक्षण ११८-१२०, आर्त ध्यान और गुणस्थान व स्वामी १२०-१२१, आर्त ध्यान और लेश्या १२१, आत ध्यान का फल १२१-१२२।
___ पंचम परिच्छेद : रौद्र ध्यान रौद्र ध्यान के लक्षण १२३.१२४,रौद्र ध्यान के भेद१२४-१२५, हिंसानन्द रौद्र ध्यान १२५, मृषानन्द रोद्र ध्यान १२६, चौर्यानन्द रौद्र घ्यान १२६-१२७. विषय संरक्षाणानन्द रौद्र ध्यान १२७-१२८, रौद्र ध्यान के बाह्य लक्षण १२८-१२६, रौद्र ध्यान के गुणस्थान व स्वामी १२६-१३०, रौद्र ध्यान लेश्या एवं भाव १३०-१३१, रौद्र ध्यान का फल १३१ ।
षष्ठ परिच्छेद : धर्म ध्यान का स्वरूप धर्म ध्यान के लक्षण १३३, धर्मध्यान के आलम्बन १३४, धर्म ध्यान एवं मैत्री आदि भावनाये १३५-१४०, धर्मध्यान की मर्यादायें १४०, भावना १४०-१४४, धर्म ध्यान के लिए देश या स्थान