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________________ धर्मध्यान का स्वरूप(१४७) ७-ध्यातव्य का ध्येय : जिसका चिन्तन किया जाये ऐसा ध्यान का विषय ध्यातव्य या ध्येय कहलाता है । ध्यान करने योग्य पदार्थ, वस्तु और आलम्बन जिसका ध्यान किया जा सके, जिस पर मन को एकाग्र किया जा सके वही ध्येय है । ध्यान के भेद ध्येय का आश्रय लेकर किये गये हैं । आज्ञा, विपाक, अपाय और संस्थान, ये चार धर्मध्यान के प्रकार बतलाये गये हैं । + लेकिन इस प्रकार से और अनेक प्रकार भी हो सकते हैं इनकी संख्या निश्चित नहीं हो सकती । जिनसेन ने शब्द, अर्थ और ज्ञान ये तीन प्रकार के ध्येय बतलाये हैं इन तीनों से ही जगत् के सभी पदार्थ ध्येय की कोटि को प्राप्त हो जाते हैं । ८-ध्याता : ध्यान करने वाला साधक ध्याता कहलाता है। ध्यान करने के लिए विशेष गुणों की आवश्यकता होती है जो साधक इन विशेष गुणों से युक्त होता है वही धर्मध्यान का ध्याता बनता है। ध्यानशतक में ध्याता के लिए तीन गुण बतलाये गये हैं -:अप्रमादी - जो मद्य, विषय, कषाय, निद्रा और विकथा जो ___ इन पांचों प्रमादों से रहित हो वही ध्याता है। निर्मोही - जिस साधक का मोह क्षीय हो गया हो या मोह का क्षय होकर प्रशान्त मोह वाला हो। ज्ञान सम्पन्न-जो ज्ञान रुपी धन सम्पदा से युक्त हो वही साधक धर्म ध्यान का अधिकारी या ध्याता होता है। + (क) आज्ञापाय विपाकानां, संस्थानस्य चिन्तनात्। इत्थं वा ध्येय भेदेन, धयं ध्यानं चतुर्विधम् ॥ (योगशास्त्र १०/७) (ख) ध्यानशतक ४५-४६ आदिपुराण २१/१३४ - सव्वप्पमायरहिया मुणओ खीणोवसंतमोहा य। झायारो नाण-धणा धम्मज्झाणस्स निद्दिट्ठा ।। (ध्यानशतक ६३)
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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