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________________ रौद्र ध्यान (१३१) कषायों की प्रधानता होने से औदयिक भाव है। A इस ध्यान में ये तीनों लेश्यायें अपने प्रभावशाली रूप में स्थितरहती हैं। यह अत्याधि दुष्प्रभाव वाली होती हैं । लेश्या कर्मजन्य पुद्गल परिणाम है, जैसे वर्ण के पुद्गल होते हैं वैसे ही उसके सम्बन्ध से जीव को भाव जागता है । यह अप्रशस्त ध्यान जब जीवों पर होता है तब वह उसकी धर्मरूपी लक्ष्मी को क्षण भर में जला डालता हैं। रौद्र ध्यान का फल रौद्र ध्यान सामान्य तौर से संसार की वृद्धि करने वाला है और खास तौर से नरक गति के पापों को उत्पन्न करने याला है। यह ध्यान नरकगति की जड़ है। अत्यन्त दुख और सन्ताप से भरे हुए नरक में अनेक सागर पयंत डाले रखना इसका फल है ।.... उत्कृष्ट दुखों को देने वाली गति नरक गति कहलाता है। रौद्र ध्यान में तीव्र संक्लेश ही होता है, इससे उनसे बाँधे जाने वाले सानुबन्ध कर्म द्वारा भव परम्परा का सर्जन होना, संसार की वद्धि होना यह स्वाभाविक है । इससे व्यक्ति संसार के वन्धन में पड़ जाता है और नरक को प्राप्त करता है। यह ध्यान अतिशय कठिन फल वाला है, तीव्र दुःख ही इस रौद्र ध्यान का फल माना गया है।४ A चारित्रसार १७०/५ * एयं वसव्विहं राग-दोष-मौहाउलस्स जीवस्स। __रोदज्झाणं संसार बद्धणं नरयगइमूलं । (ध्यान शतक २४] .... बहु सागरपर्यंतफलमस्यदुरात्मनाम् । [मूलाचार प्रदीप ६/२०३५) x क्वचित्क्वचिदमी भावाः प्रवर्तन्ते मुनेरपि ।। प्राक्क मंगौरवाच्चित्रं प्रायः संसारकारणम् ।। (ज्ञानार्णव २६/४२) x इति विगतकलंकैणितं चित्ररूप दुरितविपिनबीजं निन्द्यदुर्ध्यान युम्मम् । कटुकतरफलाढयं सम्यगालोच्य धीर त्यज सपदि यदि त्वं मोक्षमोर्गे प्रवृत्तः ॥ (ज्ञानार्णव २६/४४)
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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