________________
रौद्र ध्यान (१२७) में ही तत्पर रखता है। A जो तीव्र क्रोध व लोभ से व्याकुल रहता है, उसका चित्त दूसरों के सामान को हड़पने में ही लगा रहता है ऐसे जीव को चोरी करने में हा आनन्द की प्राप्ति होती है।* वह हमेशा लोभ के कारण दूसरों की नक्ष्मी, स्त्री व धन को हड़पने का ही चिन्तवन अपने अशुभ चित्त में करता रहता है।.... ऐसा व्यक्ति चोरी, तस्करी आदि के विषय में ही चिन्तवन करता रहता है । परिणाम स्वरूप वह सभी प्रकार की चोरियाँ करने लगता है और अपनी चोरी में ही प्रसन्न रहकर गर्व करता है। यह ध्यान अत्यधिक निन्दा का कारण है। विषय संरक्षणानन्द___काम-भोग के साधन एवं धनादि के संरक्षण, उन्हें और अधिक बढ़ाने की लालसा, व्यापार आदि तथा धनोपार्जन के साधनों की लाम वद्धि की अभिलाषा आदि सभी विषयसंरक्षणानन्द रौद्र ध्यान हैं । क्रूर परिणामों से युक्त होकर तीक्ष्ण अस्त्र-शस्त्रों से शत्रुओं को नष्ट करके उनके ऐश्वर्य तथा सम्पत्ति को भोगने की इच्छा रखना, शत्र से भयभीत होकर अपने धन, स्त्री, पूत्र राज्यादि के संरक्षण के विषय में तरह-तरह की चिन्ता करना विषय संरक्षणाA (क) तहतिव्वकोह-लोहाउलस्स भूओवघायणमणज्ज ।
परदव्वहरणचित्तं परलोयावाय निरवेक्खं ।। [ध्यानशतक २१) [ख) हठात्कारेण प्रमादप्रतीक्षया वा परस्वापहरणं प्रति सकल्पा
___ ध्यवसानं तृतीयरौद्रम । (चारित्रसार १७०/२) (ग) पर-विसय-हरण-सीतोसणीय-बिसए सुरक्खणे दुक्खो (कार्ति
केयानुप्रेक्षा ४७६] .... परश्री स्त्रीसुवस्त्वादिहरणे लोभिभिर्भशम् ।
संकल्प: क्रियते चित्ते योशुभोवात्रतस्करैः ।। (मूलाचार प्रदीप
६/२०२६) X ज्ञानार्णव २६/२५