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रौद्र ध्यान (१२५)
निरूपित किये गये हैं। → हिसानन्द रौद्र ध्यान :__अन्य प्राणियों को अपने या किसी दूसरे के द्वारा मारने, काटने या या पीडित किये जाने पर अथवा ध्वंस किये जाने पर उसे जो हर्ष या सूख होता है वह हिसानन्द रोद्रध्यान कहलाता है ।... जीव हिमा में ही आनन्द प्राप्त करता है किसी दूसरे को पीड़ित करने में ही उसे सुखानुभूति होती हैं । - इस रौद्र ध्यान का आधार क्रोध कषाय हैं। इसलिए इस कषाय से पीड़ित होकर व्यक्ति क्रोधी हो जाता है और क्रोध में आकर वह हमेशा हिंसादि की बातें सोचता रहता है कि आज उसकी पिटाई करूं, उसे चाबुक लगाउँ। उसे अग्नि में जला दूं इत्यादि भावनायें उसके दिल में आती रहती है । ऐसा व्यक्ति बहुत ही क्रूर और कठोर होता है। उसमें क्रोध का विष भरा रहता हैं ।* उसका स्वभाव निर्दयी और बुद्धि पापमयी हो जाती
→ रौद्र च बाह्याध्यात्मिक भेदेन द्विविधम् । (चारित्रसार १७०/१) ... (क) ते निष्पीडिते ध्वस्ते जन्तुजाते कथिते ।
स्वेन चान्येन यो हर्षस्तद्धि सारौद्रमुच्यते ॥ (ज्ञानार्णव
(ख) सत्तवह-वेह-बंधण-डहणंऽकण-मारणाइपणिहाणं ।
अइकोहग्गपत्थं निग्घिणमणसोऽहमविवागं ॥ [ध्यान शतक १९) (ग] तीनकषायानुरंजनं हिंसानन्दं प्रथमरौद्रम् । [चारित्रसार
१७०/२) . (घ] हिंसाणंदेणं जुदो असच्च वयणेण परिणदो जो हु । (कार्तिकेया
नुप्रेक्षा ४७५) x हिंसायां परपीडायां संरम्भाद्यैः कदर्थनैः । संकल्पकरणयद्वा बाधितेष्वांगिराशिषु ॥ (मूलाचार प्रदीप
६/२०२५) * अनारतं निष्करुणस्वभावः स्वभावतः क्रोधकषायदीप्तः । मदोद्धतः पापमतिः कुशीलः स्यान्नास्तिको यः स हि रौद्रधामा । (ज्ञानार्णव २६/५)