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जैनपरम्परा में ध्यान का स्वरूप : एक समीक्षात्मक अध्ययन [१२४)
मारता है। यह ध्यान अत्यन्त अनिष्टकारी है। चोर, शत्र जनों के वध सम्बन्धी महाद्वेष से उत्पन्न ध्यान रौद्र ध्यान कहलाता हैं IA रोद्र ध्यान के भेद
रौद्र ध्यान के हिंसा, असत्य, चोरी और विषय संरक्षण से चार प्रकार के भेद हैं।+ इसमें जीव को हमेशा हिंसा में आनन्द आता है, चोरी करने में आनन्द का अनुभव करता है सदैव असत्य बोलने में ही उसे आनन्द की प्राप्ति होती है और विषयों की रक्षा करने में हमेशा तत्पर रहते हुए वह आनन्दित रहता है यही रौद्र ध्यान के भेद हैं । स्थाना.ग में भी रौद्र ध्यान को निरूपति करते हुए उसके चार ही भेदों का उल्लेख किया गया है। - हिंसादि में जीव आनन्द की प्राप्ति करता है इसलिए इन्हें हिसानन्द, मषानन्द, चौर्यानन्द और विषय संरक्षणानन्द भी कहते है। लेकिन चारित्रसार में बाह्य और आध्यात्मिक ये रौद्र ध्यान के दो भेद भी A (क) चौरजारशात्रवजनवधबधन सन्निबद्ध महद द्वेषजनित रौद्रध्यानम् ।
(नियमसार, तात्पर्य वृत्ति ८६) (ख) स्थानाड्.ग ४/२४७, समवायांग ४ (ग) दशवकालिक सूत्र टीका, अध्ययन १ + (क) हिंसानृतस्तेय विषयसंरक्षणेभ्यो रौद्रमविरत देविरतयोः ।
(तत्वार्थ सूत्र ६/३५) [ख] भगवती २५/७ (ग) औपपातिक तपोऽधिकार सूत्र ३० (घ) भगवती आराधना, वि० टी० १६९८ (क) हिंसानन्दान्मृषानन्दाच्चौर्यात्संरक्षणात्तथा ।
प्रभवड्गिनां शश्वदपि रौद्र चतुर्विधम् ।। । ज्ञानार्णव २६/३) (ख] हिंसानन्द मषानन्दस्तेयसंरक्षणात्मकम् ।। (महापुराण २१/४३) (ग) कार्तिकेयानुप्रेक्षा ४७३-४७४ - रोहे झाणे चउबिहे पं० तं०-हिंसाणुबन्धि मोसाणुबन्धि तेणाणु
बन्धि सारक्खणाणुंबन्धि । (स्थानाड्.ग पृ० १८८) A हिंसानन्दंमृषानन्दस्तेयानन्दसमाहृयम्।। विषयाचंतसंरक्षणानन्दंतच्चतुर्विधम् ॥ (मूलाचार प्रदीप ६/२०२४]