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जैन परम्परा में ध्यान का स्वरूप (११०
निम्न प्रकार से किये गये हैं १- अनगार धर्म, २- आगार धर्म ।चारित्र के पाँच भेदों का भी वर्णन प्राप्त होता है।A १- सामयिक चारित्र, २-छेदोपस्थापना चारित्र, ३- परिहार विशुद्धि चारित्र, ४सूक्ष्मासम्पराय चारित्र, ५- यथाख्यातचारित्र। इसके चार लक्षणों का भी वर्णन है* १. अपुनर्बन्धक, २- सम्यग्दृष्टि, ३- देशविरति, ४सर्वविरति ।
- चरित्तधम्मे दुविहे पण्णते, तं जहा-अणगार चरित्त धम्मे, अगार
चरित्त धम्मे चेव । (स्थानाड्.ग, स्थान २] A (क] सामायिकछेदोपस्थापना परिहार विशुद्धि सूक्ष्मसाम्पराय
यथाख्यातमिति चारित्रम् । तत्वार्थ सूत्र ९/१८) (ख) सामाइयत्थ पढम, छेओवट्ठावणं भवे बीयं ।
परिहार विसुद्धीयं, सुहुम तह संपरायं च ॥ अकसायं अहक्खायं, छउमत्थस्स जिणस्म व।। एवं चयरित्तकर, चारित्तं होइ आहियं ॥ (उत्तराध्ययन
२८/३२-३३) . . * योगशतक १३-१६