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जैन परम्परा में ध्यान का स्वरूप (१०८)
तीन मूढ़तायें - १- देवमूढ़ता, २- गुरुमूढ़ता, ३- लोक मूढ़ता ।
आठ मद - १- जाति मद, २- कुल मद, ३- बलमद, ४- लाभमद, ५- ज्ञान मद, ६- तपभद, रूपमद, ऐश्वर्य मद ।
आठ शंकायें - १- शंका, २- कांक्षा, ३ प्रशंसा, ५- निन्दा, ६
छह अनायतन - १ - मिथ्यादर्शन, २- मिथ्याज्ञान, ३- मिथ्याचारित्र, ४- मिथ्यादृष्टि, ५- मिथ्याज्ञानी, ६- मिथ्याचारित्री |विचिकित्सा, ४- अन्यदृष्टि अस्थिरीकरण, ७- अवात्सल्य,
८- अप्रभावना |
सम्यग्दर्शन के पाँच अतिचार
शंका, २
सम्यग्दर्शन के पाँच अतिचार इस प्रकार से हैं १कांक्षा, ३- त्रिचिकित्सा, ४- मिथ्यात्त्रियों को प्रशंसा ५- मिथ्यादृष्टियों का संस्तव । ...
सम्यग्ज्ञान
सम्यग्दर्शन के लिए जिन तत्वों पर श्रद्धान अपेक्षित है उनको विधिवत् अर्थात् सही रूप में है । X अर्थात् अनेक धर्मयुक्त 'स्व' तथा 'पर' सम्यग्ज्ञान है । अपने स्वरूप को जानना हो ग्दर्शन के बिना सम्यग्ज्ञान का होना असम्भव है 14 सम्यग्ज्ञान के तीन दोष हैं १- संशय, २- विपर्यय, ३
अर्थात् विश्वास करना जानना ही सम्यग्ज्ञान पदार्थों को जानना ही सम्यग्ज्ञान है । सम्य
अनध्यवसाय | इन तीनों
मूलाचार प्रदीप ५/८५ योगशास्त्र २ / १७
x नाणेण जाणइ भावे । ( उत्तराध्ययन सूत्र २८ / ३५ ] * स्वापूर्वाथं व्यवसायात्मकं ज्ञानं प्रमाणम् । ( प्रमेय रत्नमाला १ )
4 सम्यग्ज्ञानं कार्यं सम्यक्त्वं कारणं वदन्ति जिनाः ।
ज्ञानाराधनमिष्टं सम्यक्त्वानन्तरं तस्मात् ॥ कारणकार्यविधानं समकालं जायमानयोरपि हि । दीपप्रकाशयोरिब, सम्यक्त्वज्ञानयोः सुघटम् ।। ( पुरुषार्थं सिद्धयुपाय
३३,३४)