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( १०७ ) जैन परम्परा में ध्यान का स्वरूप : एक समीक्षात्मक अध्ययन सम्यक्त्व के पाँच लक्षण -→
१- शम:
क्रोध, मान, माया और लोभरूपी कषायों का शमन अर्थात् उनको उदित होने पर शान्त करना । इसका नाम प्रशम भी है । २- संवेग
मोक्ष की अभिलाषा करना । ३- निर्वेद
४
सांसारिक विषयों के प्रति विरक्ति ।
अनुकम्पा -
निःस्वार्थ भाव से दुखी जीवों के दुखों को दूर करने की इच्छा
करना ।
५- आस्तिक्य
सर्वज्ञ कथित तत्वों पर दृढ़ श्रद्धा रखते हुए उस पर शंका का भाव न लाकर विश्वास करना । इन पाँच लक्षणों से सम्यक्त्व की पहचान होती है।
सम्यक्त्व के पच्चीस दोष
सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के लिए एवं उसकी पच्चीस दोषों को त्यागना अति आवश्यक है, क्योंकि बिना सम्यक्त्व की प्राप्ति में बाधा उत्पन्न होती है । मूढताएँ, आठ मद छह अनायतन और आठ शंका आदि के
→ वही २/१५ + ज्ञानार्णव ६/८
शुद्धता के लिए उनको त्यागे
वे दोष-तीन
रूप में कहे गये
(क) मूत्रयं मदाश्चाष्टौ तथाऽनायतनानि षड्- १
अष्टौ शंकादयश्चेति दृग्दोषाः पंचविंशति ॥ ( उपासकाध्ययन २१ / २४१] (ख) मुलाचार प्रदीप ५/६६-६७