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________________ जन परम्परा में ध्यान का स्वरूप : एक समीक्षात्मक अध्ययन [१०५] और मन का असर चेतना पर पड़ता है । जब मन अव्यवस्थित हो जाता है तो चेतना में भी अस्थिरता आ जाती है जिससे मानसिक विस मता हो जाती है लाभ-हानि, सुख-दुख आदि स्थितियों से मन जितना विषम होता उतनी हीअस्थिरता आती है । अगर स्थितियों से कोई लगाव नहीं होता वह स्थिति सम कहलाती है। उस स्थिति में चेतना स्वयं स्थिर हो जाती है, यही अवस्था ध्यान कहलाती है । आचार्य शुभ चन्द्र ने भी समभाव को ध्यान माना है। + जब तक समता की स्थिति नहीं होती तब तक वह ध्यान नहीं होता है, आचार्य हेमचन्द्र ने भी इस मत का समर्थन करते हए कहा है कि जो व्यक्ति समता की साधना किए बिना ध्यान करता है, वह कोरी विडम्बना करता है। अर्थात् समता की साधना किए बिना ध्यान असम्भव है । अतः हम देखते हैं कि ध्यान और समत्व मिले हुए हैं। ध्यान सिद्धि के हेतु ___ ध्यान की सिद्धि के लिए चार बातें जरूरी बताई गयी हैं -१सद्गुरु का उपदेश, २--श्रद्धा, ३-- निरन्तर अभ्यास एवं ४--स्थिर मन । - सद्गुरु वही होता है जी ध्यान के विषय का पूर्ण रूप से यथार्थ ज्ञाता हो चाहे वह ज्ञान प्रत्यक्ष हो या परोक्ष रूप से हो, या जिसने गहन अभ्यास के द्वारा उस सम्बन्धित विषय में सिद्धि की प्राप्ति कर ली हा। वृहद्रव्यसंग्रह की संस्कृत टीका में वैराग्य, तत्वविज्ञान, निम्रन्थता अर्थात् असंगता, समचित्तता परीषह जय ये पाँच प्रकार के ध्यान की सिद्धि के हेतु कहे हैं A पतञ्जलि ने अभ्यास की दृढ़ता + ज्ञानार्णव २७/४ x समत्वम वलम्बया थ ध्यानं यागी समाश्रयेत् । बिनसमत्वमारब्धे, ध्याने स्वात्मा विडम्ब्यते।। (योगशास्त्र ४/११२) - ध्यानस्य च पुनमुख्यो हेतुरेतच्चतुष्टयम्।। गुरूपदेशः श्रद्धानं सदाऽभ्यास: स्थिरं मनः ॥ (तत्वानुशासन २१८) A वैराग्यं तत्वविज्ञानं नैन्थ्यं समचित्तता। परीषह-जयश्चेति पंचैते ध्यानहेतवः।। (वहद्रव्यसंग्रह, संस्कृत टीका प० २०१)
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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