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________________ (१०१) जैन परम्परा में ध्यान का स्वरूप : एक समीक्षात्मक अध्ययन दण्डासन आदि आसनों के अर्थ भिन्न हैं अभय देवसूरि ने पर्यड्क आसन का अर्थ पदमासन किया है। आचार्य हेमचन्द्र ने पद्मासन को पयंड्.कासन से भिन्न माना है।A शंकराचार्य ने घुटनों को मोड़, हाथों को फैलाकर सोना पर्यकासन है ऐसा माना है।- अपराजित सूरि ने वीरासन का अर्थ दोनों जवाओं में अन्तर डालकर उन्हें फैलाकर बैठना किया है, जबकि आचार्य हेमचन्द्र ने बायें पैर को दाई जंघा पर और दायें पैर को बाई जंघा पर रखकर बैठना वीरासन है ऐसा कहा है। उनके अनुसार इस मुद्रा को कुछ योगाचार्य पद्मासन भी मानते हैं ।(१) आचार्य अमितगति का भी यह मत है।(२) ध्यान के लिए कठोर आसन का विधान नहीं है। जिस आसन से मन स्थिर हो, वही आसन विहित है ।... जिनसेन ने ध्यान की दृष्टि से शरीर की विषम स्थिति को अनुपयुक्त बतलाया है उन्होंने कहा है कि विमनस्कता की स्थिति में ध्यान नहीं हो सकता अतः ध्यान के लिए सुखासन ही इष्ट है। कायोत्सर्ग और पर्यड्.क ये दोनों आसन सुखासन है शेष सभी आसन विषम आसन हैं इन दोनों में भी मुख्यतः पर्य.क आसन ही सुखासन हैं- शुभचन्द्र और हेमचन्द्र ने ध्यान के लिए किसी भी आसन विशेष का वर्णन नहीं किया यह * स्थानाड.ग ५/४०० A योगशास्त्र ४/१२५, १२६ - पातञ्जलयोगसूत्र २/४७ भाष्य Xx वीरासणं- जंघे वि प्रकृष्टदेशे कृत्वासनम् । मूलाराधना ३/२२५, विजयोदया । + योगशास्त्र ४/१२६ (१] पद्मासनमित्येके । (योगशास्त्र ४/१२६) (२) उर्वोपरि निक्षेपे, पादयोविहिते सति । वीरासनं चिरं कत्तु, शक्यं वीरैर्न कातरैः ॥ (अमितगति श्रावका चार ८/४७) .... ज्ञानार्णव २८/११, योगशास्त्र ४/१३४ x महापुराण २१/७०-७२
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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