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जैन परम्परा में ध्यान का स्वरूप (१०० बैठना ही दण्डासन है। ७- उत्कटिकासन
भूमि से लगी एड़ियों के साथ जब दोनों नितम्ब मिलते है, तब उत्कटिकासन होता है। ८- गोदोहिकासन
गाय को दुहते समय बैठने का आसन । एडियों को उठाकर पंजे के बल पर बैठना अर्थात् जब एड़ियाँ जमीन से लगी हई नहीं होती और नितम्ब एड़ियों से मिलते हैं तब गोदोहिकासन होता है।8- कायोत्सर्गासन
कायिक ममत्व का त्याग करके, दोनों भुजाओं को लटकाकर शरीर और मन से स्थिर होना, कायोत्सर्ग आसन है।
इसी प्रकार सुखासन आदि आसनों का वर्णन भी है। सुखासन गृहस्थ तथा साधु दोनों के लिए है । बायें पैर को उसके नीचे और दायें पैर को दाई जचा पर रखकर बैठना ही सुखासन है ।... इस प्रकार विभिन्न ग्रन्थों में आसनों का वर्णन भी भिन्न प्रकार से पाया गया है । पतञ्जलि ने आसनों की व्याख्या की हैं, किन्तु उसके प्रकारों का उल्लेख नहीं किया है । भाष्यकार व्यास ने १३ आसनों का उल्लेख किया है.१- पद्मासन, २- भद्रासन, ३- वीरासन, ४स्वस्तिकासन, ५- दण्डासन, ६- सोपाश्रयासन, ७- पर्यड्.कासन, ८- क्रौचनिषदन, ६. हस्तिनिषदन, १०- उष्ट्रनिषूदन, ११- समसंस्थान, १२- स्थिरमुख, १३- यथासुख IX
कुछ आसनों के अर्थ समान हैं । पयंड्.क, वीरासन, उत्कटिका, गोर्दोहन गोदोहिका तद्वधा याडसौ गोदोहिका [स्थानाड्.ग
५/४००) - गोदोहगा-गोर्दोहे आसनमिव पार्णिद्वयमुत्क्षिप्याग्रपादाभ्यामासनम्
(मूलाराधना ३/२२४) ... यशस्तिलक ३६ x पातञ्जलयोगसूत्र २/४६ भाष्य