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( १२ ) जैन परम्परा में ध्यान का स्वरूप : एक समीक्षात्मक अध्ययन
श्रावकाचार में वर्णित पर्यंकासन से मिलता-जुलता है । १- पर्यंकासन
पर तथा
दोनों जंघाओं के निचले भाग पैरों के ऊपर रखने दाहिना और बाँया हाथ नाभि के पास दक्षिण-उत्तर में रखने से पर्यकासन होता है ।
२- वीरासन -
बाँया पैर दाहिनी जाँघ पर और दाहिना पैर बायीं जाँघ पर रखकर वीरासन होता है।
३- वज्रासन -
बायें पैर को दाई जाँघ पर और दायें पैर को बाई जाँघ पर रखकर हाथों को वज्राकार रूप में पीछे लेकर पैर के अँगूठे पकड़ना ही वज्रासन है | X यह बद्धपद्मासन जैसी स्थिति है । कुछ आचार्यों ते इसे बेतालासन भी कहा है ।
४- पद्मासन
दायें पैर को बायीं जाँघ पर और बायें पैर को दायीं जाँघ पर भली प्रकार स्थापन करके दोनों हाथों से पैर के अँगूठों को पकड़ना ही पद्मासन है ।
५- भद्रासन
दोनों पैरों के तल भाग वृषण प्रदेश में अण्डकोषों की जगह एकत्र करके, उसके ऊपर दोनों हाथों की अँगुलियाँ एक दूसरी अँगुली में डालकर रखना भद्रासन है । +
६- दण्डासन -
भूमि पर बैठकर इस प्रकार पैर फैलाना कि अँगुनियाँ, गुल्फ और जाँघें जमीन से लगी रहें अर्थात् दण्ड की भांति पैर पसार कर 4 अमितगतिश्रावकाचार ८/४५-४८
हठयोगप्रदीपिका १/२१
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योगशास्त्र ४ / १२७ + योगशास्त्र ४ / १३०