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व्यवहार भाष्य
यत्र-तत्र ऐन्द्रजालिक विविध करतब दिखाते हुए घूमते थे। साथ ही संन्यासी वर्ग भी इसका प्रयोग करता था से गोले को निगलकर कान से निकाल देते थे। जादू-टोनों का प्रयोग भी खूब चलता था।
मृतक-परिष्ठापन में अन्य सावधानियों के साथ दिशा का विशेष ध्यान रखा जाता था। विपरीत दिशा में परिष्ठापन कर विशेष प्रभाव होता था। उत्तरदिशा में मृतक का परिष्ठापन उत्तम माना जाता था। आनंदपुर में साधु उत्तरदिशा में परिष्ठापन करते थे।
विविध प्रकार के भोजों का आयोजन होता था-आवाह(वरपक्ष का भोजन), वीवाह (वधूपक्ष की ओर से भोजन), जण्ण (नाग आदि देवताओ को श्राद्ध), करडुय (मृतक भोज) आदि।
वाद-विवाद के प्रसंग चलते थे। वाचिक संग्राम में जाते समय वादी अनेक बातों का ध्यान रखते थे। वाक्पाटव के लिए ब्राह्मी आदि औषधि का सेवन करते थे। बुद्धिबल, धारणाबल एवं ऊर्जा की वृद्धि के लिए दूध एवं घी का विशेष प्रयोग किया जाता था।
वाद-विवाद किनके साथ करना चाहिए और किनके साथ नहीं करना चाहिए, इसका भी सुन्दर विवेक भाष्यकार ने प्रस्तुत किया है-आर्य, विज्ञ, भव्य, धर्मप्रतिज्ञ, अलीकभीरू, शीलवान्, आचारवान् के साथ वाद करना चाहिए। अर्थपति, नृपति, पक्षपाती, बलवान्, प्रचण्ड, गुरु, नीच, एवं तपस्वी के साथ वाद नहीं करना चाहिए।
गंगायात्रा पर सार्थवाह बहुत जाते थे। मालवदेश में चोरों का प्रभाव अधिक था। चोर धन-माल की ही चोरी नहीं करते थे, व्यक्तियों एवं साध्वियों का भी अपहरण कर लेते थे। नारी
अवस्था की दृष्टि से अठारह वर्ष की युवती डहरिका तथा ४० साल की स्त्री तरुणी कहलाती थी। नारी की पराधीनता का चित्र खींचते हुए भाष्यकार कहते हैं- नारी बचपन में पिता, यौवन में पति तथा वृद्धावस्था में पुत्र के अधीन रहती है, अतः नारी कभी स्वाधीन नहीं रहती।"
कभी-कभी पुरुष महिलाओं पर हाथ भी उठा लेते थे। महिलाओं की शक्ति बढ़ना उचित नहीं माना जाता था। भाष्य में स्पष्ट उल्लेख है कि जिस गांव या नगर में महिला नायिका है, वह गांव या नगर शीघ्र नष्ट हो जाता है तथा जो लोग स्त्री के परवश हैं, वे धिक्कार के पात्र हैं।
साध्वियों को कुछेक विशेष ग्रंथों की वाचना देने का निषेध था। बृहत्कल्प भाष्य में निषेध के हेतुओं का उल्लेख है।
वास्तुविद्या
वास्तुविद्या की दृष्टि से अनेक महत्त्वपूर्ण तथ्य प्रस्तुत ग्रन्थ में मिलते हैं। एक खम्भे पर आधारित प्रासाद बनाए जाते थे।१२ कभी-कभी रानी या पत्नी की इच्छा से हाथीदांत से जटित सौध भी बनाए जाते थे।३
१. व्यभा. १७६ २. व्यभा. ८७६ टी. प. ११७।
व्यभा.३२६६-७३। ४. व्यभा.३२७५ टी. प. ७६ । ५. व्यभा.३७३६। ६. व्यभा-७७ टी. प. ८४। ७. व्यभा.७१२-७१५ । ८ व्यभा. १६१२-१४। ६. व्यभा-१९८१,३२५२। १०. व्यभा.२३१३, ११. व्यभा. १५६०, तुलना मनुस्मृति। १२. व्यभा.६३ टी. प. २४। १३. व्यभा.५१७ टी. प. १७॥
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