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अमात्य तक पहुंचाते। भाष्य में चार प्रकार के गुप्तचरों का उल्लेख आता है-सूचक, अनुसूचक प्रतिसूचक और सर्वसूचक। • सूचक पड़ोसी राज्यों में जाकर अन्तःपुरपालक के साथ मैत्री कर वहां के सारे रहस्यों को जान लेते थे । • अनुसूचक नगर के अन्दर की गुप्त बातों को ज्ञात करते थे।
• प्रतिसूचक नगरद्वार के समीप अल्पप्रवृत्ति करते हुए अवस्थित रहते तथा पड़ोसी राज्य से आने-जाने वाले में रहते थे।
• सर्वसूचक अपने नगर में बार-बार आते-जाते रहते थे।
इन चारों प्रकार के गुप्तचरों का आपस में गहरा संबंध रहता था। सूचक जो कुछ भी नयी बात सुनते या देखते वे अनुसूचक को बता देते। अनुसूचक सारा वृत्तान्त प्रतिसूचक को तथा प्रतिसूचक सारे वृत्तान्त के साथ-साथ स्वयं द्वारा गृहीत तथ्य सर्वसूचक को बता देते और फिर सर्वसूचक अमात्य तक सारा रहस्य पहुंचा देते। इन गुप्तचरों में स्त्री और पुरुष दोनों होते थे। ये पड़ोसी नंगर, पड़ोसी राज्य अपने राज्य तथा अपने नगर एवं अन्तःपुर में रहते थे गुप्तचरी करने वाली स्त्रियों को उचित वेतन-दान मिलता था। अमात्य इन गुप्तचर पुरुष और स्त्रियों से शत्रुराज्य की सारी बातें जान लेते थे।
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कौटिल्य ने नौ प्रकार के गुप्तचरों का उल्लेख किया है-कापटिक, उदास्थित गृहपतिक, वैदेहिक, तापस, सत्री, तीक्ष्ण, रसद और भिक्षुक ।'
राज्यकर
राजा प्रजा से दस प्रतिशत कर लेकर संतुष्ट हो जाता था। नगर कर से मुक्त होते थे। एक गांव से दूसरे गांव में सामान ले जाने पर चुंगी कर लगता था, जो प्रत्येक व्यापारी को बीस प्रतिशत देना पड़ता था।
जिस विधवा महिला के पुत्र नहीं होता, उसको जीवन निर्वाह योग्य धन देकर शेष सम्पदा राज्य कोष में रख ली जाती थी पर कुछ दयालु राजा इसके अपवाद भी होते थे।' यदि कहीं उत्खनन में निधि मिल जाती तो उस पर राजा का अधिकार होता था, लेकिन कभी-कभी राजा प्रसन्न होकर उस भूमि के स्वामी को ही वह निधि दे दिया करता था।
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ब्याज का धन्धा अधिक होता था व्याज पर दिये रुपयों की वापिस तसूली कठिन होती थी जो मीठा बोलता, सापेक्ष व्यवहार करता या सहन कर लेता वह ऋण का धन वापिस ले सकता था। किसान आवश्यकता पड़ने पर धान्य भी ब्याज पर देते थे।
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अर्थव्यवस्था
१. व्यभा· ६३६-४७१
२.
आचार प्रधान ग्रंथ होने के कारण अर्थव्यवस्था एवं व्यवसाय आदि का विशेष वर्णन इस ग्रंथ में नहीं मिलता लेकिन भाष्य में वर्णित विविध कथाओं के माध्यम से उस समय की अर्थ व्यवस्था को जाना जा सकता है ।
अर्थशास्त्र १/६/१०/१।
दुकानों के लिए शाला शब्द का प्रयोग होता था। चक्कियसाला (तेली की दुकान), गधियसाला (सुगंधित द्रव्य की दुकान), घोडगसाला, लोणियसाला आदि विविध शालाओं का वर्णन मिलता है।' विविध प्रकार के वस्त्रों का व्यापार चलता था । ताम्रलिप्त एवं सिंधुदेश के वस्त्र अधिक प्रसिद्धि प्राप्त थे । सामुद्रिक व्यापार द्वारा माल का आयात-निर्यात होता था । " समुद्र में एक
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३. व्यभा. ६२७ ।
४.
व्यवहार भाष्य
व्यभा. ६१५ टी. प. १२७ ।
शत्रु
५. व्यभा. ४५५, ४५६ ।
६. व्यभा. ३२५१ ।
७.
व्यभा. २६१० ।
て
व्यभा. ३७२५ ।
६.
व्यभा. ३७३६ ।
१०. व्यभा. २८६५ ।
११. व्यभा. १२०१, १२०२ ।
की घात
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