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व्यवहार भाष्य : एक अनुशीलन
प्रकारान्तर से भी राज्य में प्रमुख स्थान पर आसीन पांच व्यक्तियों के नामों का उल्लेख भाष्य में मिलता है-राजा, युवराज, अमात्य, श्रेष्ठी,' पुरोहित। राज्य का उत्तराधिकारी
प्राचीन शासन पद्धति में राज्य का उत्तराधिकारी वंश परम्परा से होता था। राजा का ज्येष्ठ पुत्र ही राज्य का अधिकारी होता था। कौटिल्य के अनुसार राज्य का उत्तराधिकारी ज्येष्ठपुत्र को बनाने में हानि नहीं है पर वह अविनीत और उद्दण्ड नहीं होना चाहिए। एक से अधिक पुत्र होने पर राजा परीक्षा करके योग्य पुत्र को युवराज पद देता था। वह राजकुमार के शौर्य, बुद्धिबल, व्यवहार कुशलता, करुणा आदि गुणों को देखकर राज्य का भार सौंपता था।
राजा द्वारा राजकुमार की शक्ति आदि गुणों की परीक्षा के अनेक उदाहरण भाष्य में मिलते हैं। कभी-कभी राजा नैमित्तिकों से भी इस बारे में विमर्श किया करता था। जो राज्य में क्षेम (नीरोगता), शिव (कल्याण), सुभिक्ष एवं उपद्रवों का अभाव कर सके, उसे राजा अपना उत्तराधिकारी बनाता था। तथा जो डमर, मारि, दुर्भिक्ष एवं चोर आदि से जनता की रक्षा न कर सके, जो धन-धान्य एवं कोश की सुरक्षा न कर सके तथा जिसके कारण पड़ोसी राजा बलवान हो जाए ऐसे राजकुमार को युवराज पद नहीं दिया जाता था।
यदि राजा निःसंतान होता और बिना युवराज पद की घोषणा किए ही कालगत हो जाता तो मंत्री एवं सामन्तगण द्वारा अधिवासित करके घोड़े या हाथी को नगर के तिराहे-चौराहे पर घुमाया जाता था। घोड़ा या हाथी जिस व्यक्ति को अपनी पीठ देता वही राजा घोषित कर दिया जाता था। इस क्रम में चोर का भी राज्याभिषेक हो जाता था। चोर मूलदेव का राजा बनना ऐसी ही एक घटना है। अंतःपुर
राजघराने में रानियों के अंतःपुर की भांति कन्याओं के अंतःपुर भी होते थे। अंतःपुर की रक्षा हेतु राजा बहुत सावधान रहता था। उनकी सुरक्षा का भार महत्तरिकाओं पर होता था। कन्या-अन्तःपुर में यौवन प्राप्त कन्याएं अधिक रहती थीं। कन्याएं गवाक्ष में बैठकर यदा-कदा अन्यान्य व्यक्तियों के साथ आलाप-संलाप करती थीं। यदि महत्तरिका इस ओर ध्यान नहीं देती या कड़ा अनुशासन नहीं करती तो कन्याएं भाग जाती थीं। लेकिन कुछ महत्तरिकाएं कन्याओं पर पूरा अनुशासन रखती थीं, जिससे वे दुःशील नहीं बन पाती थीं। अंतःपुर में हर किसी का प्रवेश वर्जित था। राजा का विश्वासपात्र व्यक्ति ही अंतःपुर में प्रवेश कर सकता था।
- सेठ लोग यदि परदेश जाते तो वे अपनी वयःप्राप्त कन्याओं को राजा के कन्या-अन्तःपुर में रखकर चले जाते, जिससे उनकी सुरक्षा रहती थी। राजा अपनी कन्या की भांति उनकी सुरक्षा करता था।
गुप्तचर
राजनीति में गुप्तचरों का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। प्राचीन साहित्य में इनके लिए गूढपुरुष, चारपुरुष आदि शब्दों का प्रयोग मिलता है। राज्य की व्यवस्था को सुचारुरूप से देखने हेतु अमात्य गुप्तचरों की नियुक्ति करता था। आंतरिक उपद्रवों एवं बाह्य आक्रमणों की गुप्त जानकारी इनसे ज्ञात की जाती थी। ये गुप्तचर पड़ोसी राज्य में रहते और वहां की सूचनाएं एकत्रित कर
१. व्यभा. २१६। २. राजा द्वारा प्रदत्त देवताचिहित सुवर्णपट्ट से विभूषित तथा सम्पूर्ण नगर की चिन्ता करने वाला नागरिक श्रेष्ठी कहलाता था। ३. शान्तिकर्म करने वाला। ४. अर्थशास्त्र १/१७॥ ५. व्यभा. १६३६-४०, १६६४ देखें परि ८, कथा सं. ०। ६. व्यभा. १५६४-६७। ७. व्यभा. १८६५-६७ देखें-परिशिष्ट ८ कथा सं. ८७।
व्यभा.६६७,६६८ १९०७। ६. व्यभा.१६०४, १६०५ ।
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