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व्यवहार भाष्य
• आर्य समुद्र एवं आर्य मंगू का घटना प्रसंग' (गा. २६८८-६२) । • आचार्य भद्रबाहु की महापान (महाप्राण) साधना (गा. २७०३)। •मिथ्यात्व के प्रसंग में गोविंदाचार्य, जमाली, श्रावक, तच्चण्णिय एवं गोष्ठामाहिल का उल्लेख (गा. २७१३, २७१४)। • आर्य महागिरि के पश्चात् संभोज की परम्परा नहीं रही। (गा. २६०८ टी. प. १४) • आर्यरक्षित ने दशपुर नगर में इक्षुगृह नामक उद्यान में वर्षावास में एक अतिरिक्त मात्रक रखने की अनुज्ञा दी।
(गा. ३६०५, ३६०६)। • आर्यरक्षित के बाद तीसरे संहनन का विच्छेद हो गया (गा. ३७८० टी. प. १३)। • केवली के विच्छेद होने के कुछ समय बाद चतुर्दशपूर्वी का विच्छेद हो गया (गा. ४१६५)। • दुःप्रसभ आचार्य के बाद महावीर के तीर्थ की व्यवच्छित्ति (गा. ४१७४)। • प्रथम संहनन एवं चतुर्दशपूर्वी का एक साथ विच्छेद होता है। उनके विच्छिन्न होने पर अनवस्थाप्य और पारांचित-इन
दोनों अंतिम प्रायश्चित्तों का भी विच्छेद हो गया (गा. ४१८१)। तीर्थ की अवस्थिति महावीर-निर्वाण के २१ हजार वर्ष बाद तक रहेगी (गा. ४२१४)। • चेटक एवं कोणिक के मध्य महाशिलाकंटक एवं रथमुसल युद्ध का उल्लेख (४३६३-६५)। • प्रायोपगमन का विच्छेद चतुर्दशपूर्वी के साथ हो गया (गा. ४४०१)। • कुम्भकारकृत नगर में सुव्रतस्वामी के शिष्य आचार्य स्कन्दक के शिष्यों को यंत्र में पीलने की घटना (४४१७)। • सुबंधुमंत्री के द्वारा चाणक्य को कंडों के मध्य अग्नि में प्रज्वलित करने का उल्लेख (४४२०)। • चिलातपुत्र एवं कालादवैश्य के प्रायोपगमन संथारे का उल्लेख (४४२२,४४२३) । • जंबू के पश्चात् बारह अवस्थाओं के विच्छेद का उल्लेख (गा. ४५२६)। • उज्जयिनी में शक के राजा बनने की घटना (४५५७-५६)। • महावीर के शासन में १४ हजार प्रकीर्णक तथा शेष तीर्थंकरों के शासन में जितने प्रत्येकबुद्ध उतने प्रकीर्णक
(गा. ४६७१)। राज्य व्यवस्था के घटक तत्त्व
आचारप्रधान ग्रंथ होने पर भी भाष्य में राज्य एवं राजनीति सम्बंधी महत्त्वपूर्ण चर्चा प्राप्त होती है। यहां भाष्य में चर्चित कुछ महत्त्वपूर्ण पहलुओं को प्रस्तुत किया जा रहा है। राज्य व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने हेतु आधारभूत पांच व्यक्तियों की अनिवार्यता मानी गयी है-राजा, वैद्य, धनवान्, नैयतिक एवं रूपयक्ष। कौटिल्य ने शासन-तंत्र के सात अंग स्वीकार किए हैं-१. स्वामी, २. अमात्य ३. राष्ट्र अथवा जनपद ४. दुर्ग, ५. कोश ६. दण्ड, ७. मित्र।
भाष्य में उल्लिखित ये पांच व्यक्ति पांच क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रतिनिधि पुरुष कहे जा सकते हैं। किसी भी देश की शासन-व्यवस्था को सुदृढ़, गतिशील एवं सुचारु रूप से चलाने में इन पांच तत्त्वों की आवश्यकता रहती है
१. सृदृढ़ राजनीति। २. सम्यक् चिकित्सा। ३. आर्थिक सुव्यवस्था। ४. जीविका की सुलभता। ५. न्याय एवं धर्मपरायणता।
१. तुलना निभा. १११६ चू. पृ १२५ । २. व्यभा.६२४॥
क. अर्थशास्त्र अ. ६/१: स्वाम्यमात्य-जनपद-दुर्ग-कोश-दण्डमित्राणि प्रकृतयः । ख. मनुस्मृति ६/२६४: स्वाम्यमात्यौ पुरं राष्ट्र, कोशदण्डौ सुहत्तथा।
सप्तप्रकृतयो ह्येताः, सप्ताङ्गं राज्यमुच्यते॥
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