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व्यवहार भाष्य
जाता है। दृप्तचित्त के प्रसंग में भाष्यकार ने राजा शातवाहन का उदाहरण प्रस्तुत किया है। शातवाहन खुशी के अनेक समाचारों को सुनकर दृप्त हो जाता है। वह अनर्गल प्रलाप एवं असंबद्ध क्रिया करने लगता है। उन्मत्त चित्त
जिस स्थिति में व्यक्ति दिग्मूढ़ हो जाता है, वह उन्मत्त चित्त कहलाता है। वह आत्मसंचेतक होता है अर्थात् अपना दुःख स्वयं ही उत्पन्न करता है। दो कारणों से व्यक्ति उन्मत्त बनता है-यक्ष के आवेश से तथा मोहनीय कर्म के उदय से। इसके अतिरिक्त पित्त के उद्रेक एवं वायुक्षोभ से भी व्यक्ति उन्मत्त बन जाता है।
भाष्यकार ने मोह से उत्पन्न उन्मत्तता को दूर करने के विविध उपायों का निर्देश किया है।'
यदि वायु से उत्पन्न उन्मत्तता है तो तैल-मालिश, घृत-पान आदि उपायों द्वारा चिकित्सा की जा सकती है। यदि पित्त की प्रबलता से उन्मत्तता हुई है तो दूध में मिश्री आदि मिलाकर पिलाने से चिकित्सा की जा सकती है।
विधायक चिन्तन से व्यक्ति का मनोबल वृद्धिंगत हो जाता है और निषेधात्मक चिन्तन से भय के साथ निराशा भी बढ़ जाती है तथा मनोबल टूट जाता है। इसलिए भय-निवारण में विधायक चिंतन और उचित आश्वासन का बहुत बड़ा महत्त्व है। इस संदर्भ में भाष्यकार द्वारा उल्लिखित निम्न दृष्टान्त बहुत महत्त्वपूर्ण हैं-कोई व्यक्ति कुएं में गिर गया। वह इस बात से भयभीत हो गया कि मैं इस कुएं से बाहर कैसे निकलूंगा? तब यदि कुएं के तट पर खड़े व्यक्ति आश्वासन देते हैं कि तुम डरो मत, हम तुम्हें निकाल देंगे। देखो, हम रस्सी भी लाए हैं। इस प्रकार आश्वासन मिलने पर वह निर्भय हो जाता है और स्थिरता से विघ्न का पार पा जाता है। इसके विपरीत यदि कोई कहे-देखो, यह बेचारा कएं में गिरा है। यह मर जाएगा, इसको कौन बाहर निकालेगा? तब वह निराश होकर अशक्त हो जाता है और अकारण ही भयाक्रान्त होकर मर जाता है। कोई व्यक्ति नदी के स्रोत में बहने लगा। मरने के डर से वह भयभीत हो गया। तट पर खड़े व्यक्ति यदि आश्वासन देते हैं तो वह नदी को पार कर लेता है, अन्यथा वह निराश होकर भय से मर जाता है।
इस प्रकार उन्मत्तता, क्षिप्तता आदि अवस्थाओं से आक्रान्त व्यक्ति असाधारण या असामान्य चित्त वाला हो जाता है। भाष्य में इन अवस्थाओं का सुंदर विश्लेषण हुआ है। भाष्यकार ने मनोवैज्ञानिक के रूप में चित्त की इन असामान्य या असाधारण अवस्थाओं के कारण एवं निवारण का सटीक वर्णन प्रस्तुत किया है। मनोरचना में क्षेत्र का प्रभाव
क्षेत्र भी व्यक्ति के चरित्र एवं उसकी मनोरचना को प्रभावित करता है। भाष्यकार ने क्षेत्र के आधार पर मनोरचना के सुंदर उदाहरण प्रस्तुत किए हैं।
मगध देशवासी इंगित और आकार से, कौशल देशवासी केवल देखने मात्र से तथा पांचाल देशवासी आधा कहने से पूरे अभिप्राय को जान जाते हैं। दक्षिणवासी बिना कहे कुछ नहीं जानते, साक्षात् कहने पर ही जान पाते हैं क्योंकि वे जड़प्रज्ञ होते हैं। आंध्र प्रदेशवासी अक्रूर अभिप्राय वाले, महाराष्ट्री अवाचाल तथा कौशलदेशवासी बहुदोषी एवं पापी होते हैं।
१. व्यभा. ११२४, ११२५ । २. व्यभा.११२६-३१, देखें परिशिष्ट नं. ८, कथा सं. ५६ । ३. व्यभा. ११५३ टी. प. ४२।
व्यभा. ११४७ टी. प. ४०,४१ । ५. व्यभा. ११४८-५१। ६. व्यभा.११५२।। ७. व्यभा.५४६, टी. प. २६। ८. व्यभा. ५४६, टी. प. ३०॥ ६. व्यभा. ४०२० : मागहा इंगितेणं तु, पेहिएण य कोसला। अद्भुत्तेण उ पंचाला, नाणुत्तं दक्षिणावहा॥ १०. व्यभा. २९५६ : अंधं अकूरमययं,अवि या मरहट्ठयं अवोकिल्लं । कोसलयं च अपावं, सतेसु एक्कं न पेच्छामो॥
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