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परिशिष्ट-१७
विशिष्ट विद्याएं
आदर्श (दर्पण) विद्या अदाए त्ति या आदर्शविद्या तया आतुर आदर्श प्रतिबिम्बितोऽपमाय॑ते आतुरः प्रगुणो जायते।
(गा. २४३६ टी. प. २६) आन्तःपुरिकी विद्या
आन्तःपुरे आन्तःपुरिकी विद्या भवति यया आतुरस्य नाम गृहीत्वा आत्मनो अङ्गमपमार्जयति, आतुरश्च प्रगुणो जायते सा आन्तःपुरिकी।
(गा. २४३६ टी. प. २६) ओसावणि वह विद्या, जिसके प्रयोग से सभी गहरी निद्रा में सो जाते हैं।
(गा. १५२६) उण्णामिणी यह विद्या, जिसके प्रयोग से वृक्ष की शाखाएं पुनः ऊपर हो जाती हैं।
(गा. ६३ टी. प. २४) ओणामिणी यह विद्या, जिसके प्रयोग से वृक्ष की शाखाएं नीचे हो जाती हैं।
(गा. ६३ टी. प. २४) चापेटी विद्या
यया अन्यस्य चपेटायां दीयमानायामातुरः स्वस्थीभवति, सा चापेटी। तालवृन्त विद्या तालवृन्तविषया विद्या । यया तालवृन्तमभिमंत्र्य तेनातुरोऽपमृज्यमानः स्वस्थो भवति सा तालवृन्तविद्या।
(गा. २४३६ टी. प. २७) तालुग्घाडिणि वह विद्या, जिससे ताले टूट जाते हैं।
(गा. १५२६) दर्भ विद्या
या दर्भे दर्भविषया भवति विद्या, यया दभैरपमृज्यमान आतुरः प्रगुणो भवति । (गा. २४३६ टी. प. २७)
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