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________________ ७८] व्यवहार भाष्य वृक्ष, क्षार एवं कटुरस वाले वृक्षों के नीचे आलोचना नहीं करनी चाहिए। ऊसरभूमि, भृगुप्रपात, दग्धस्थल, विद्युत् आदि द्वारा प्रहत स्थल-ये सारे अप्रशस्त स्थान हैं। तांबा, त्रपु, शीशक के ढेर भी आलोचना के लिए वर्जनीय माने गए हैं। शून्यगृह, अरण्य, प्रच्छन्नस्थान, उपाश्रय के भीतर या मध्य का स्थान, ध्रुवकर्मिकों के काम का स्थान आलोचना के लिए अयुक्त है। शालि आदि प्रशस्त धान्यों का ढेर तथा मणि, स्वर्ण, मौक्तिक, वज्र, वैडूर्य, पद्मराग आदि का ढेर आलोचना के लिए प्रशस्त है। इक्षुवन, फलित-पुष्पित आराम, शालिवन, चैत्यगृह, अखंडगृह, प्रतिध्वनित होने वाला स्थान, प्रदक्षिणा आवर्तोदक वाली नदी या कमल-सरोवर आदि आलोचना के प्रशस्त क्षेत्र हैं। आलोचना के लिए तीन दिशाएं प्रशस्त मानी गई हैं-पूर्व, उत्तर अथवा वे दिशाएं जिनमें अर्हत्-केवली, मनःपर्यवज्ञानी, चतुर्दशपूर्वी, त्रयोदशपूर्वी, द्वादशपूर्वी एकादशपूर्वी, दशपूर्वी, नवपूर्वी तथा युगप्रधान आचार्य विचरण कर रहे हों। आलोचना विशोधि का सशक्त उपक्रम है। आलोचना तब ही ठीक हो सकती है, जब आलोचक स्वस्थचित्त होता है। जब व्यक्ति अन्यमनस्क होता है या चित्त में संतुलन नहीं होता तब वह अनर्गल प्रलाप करता है तथा अपने दोषों का उचित रूप से उद्भावन नहीं कर सकता। चित्त की अवस्थाएं चित्त की अनेक अवस्थाएं हैं। भगवान महावीर ने कहा-'अणेगचित्ते खलु अयं पुरिसे'-यह पुरुष अनेक चित्तवाला होता है। चित्त की मुख्य दो अवस्थाएं हैं-समाधिस्थ एवं असमाधिस्थ अर्थात् स्वस्थ चित्त एवं अस्वस्थ चित्त। मनोविज्ञान की भाषा में इसे सामान्य एवं असामान्य चित्त कहा जा सकता है। भाष्यकार ने अस्वस्थ चित्त की तीन अवस्थाओं का वर्णन किया है १. क्षिप्तचित्त्व, २. दृप्तचित्त, ३. उन्मत्तचित्त क्षिप्तचित्त क्षिप्तचित्त का अर्थ है-चित्त-विप्लव, चित्त की रुग्णता। भाष्यकार के अनुसार निम्न कारणों से व्यक्ति क्षिप्त होता है-अनुराग, भय और अपमान। १. अनुराग-किसी प्रिय व्यक्ति का अनिष्ट या मरण जानकर विक्षिप्त होना, जैसे-पति का अकस्मात् मरण सुनकर भार्या का क्षिप्तचित्त होना। २. भय-विक्षिप्तता का एक बहुत बड़ा कारण भय है। भाष्यकार ने भय के अनेक कारणों का उल्लेख किया है। सिंह, मदोन्मत्त हाथी, शस्त्र आदि देखकर भयभीत हो जाना, मेघ-गर्जन, बिजली का कड़कना आदि भयंकर आवाज सुनकर भयभीत होना, आग आदि को देखकर भयाक्रान्त होना आदि। आधुनिक मनोवैज्ञानिकों ने इन्हें असंगत भय माना है। उन्होंने भय से होने वाले मानसिक रोगों की एक लम्बी सूची प्रस्तुत की है, जिसे फोबिया कहते हैं। उनके अनुसार भय के कुछ कारण ये हैं-ऊंचे स्थान का भय, खुले स्थान का भय, पीड़ा से भय, तूफान, बिजली एवं गर्जन से भय, बंद स्थानों से भय, स्त्रियों से भय, रक्त से भय, जल से भय, कीटाणुओं से भय, अकेलेपन से भय, शव का भय, अंधेरे से भय, भीड़ से भय, रोग से भय, अग्नि से भय, भोजन से भय, जानवरों से भय, रोग-संक्रमण से भय।१० १. व्यभा.३०७, भआ.५५७। २. व्यभा.३० ३. व्यभा. २३६६, २३७०। ४. व्यभा.३१३॥ व्यभा.३१४ : भआ तु. ५६२। आयारो ३/४२। ७. व्यभा.१०७८, १०७६। ८. व्यभा. १०८०-८५ । ६. व्यभा. १०८६ । १०. आधुनिक असामान्य मनोविज्ञान पृ. २५३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002531
Book TitleAgam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra Bhashya
Original Sutra AuthorSanghdas Gani
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages860
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vyavahara
File Size14 MB
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