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________________ १८२] परिशिष्ट-१२ जो जं काउ समत्थो, सो तेण विसज्झते असढभावो। जो जिस कार्य को करने में समर्थ है, वह पवित्रभाव से उसको करता हुआ शुद्ध हो जाता है। (गा. ५५७) गृहितबलो न सुज्झति। जो शक्ति का गोपन करता है, उसकी शोधि नहीं होती। (गा. ५५७) दंडसुलभम्मि लोए, मा अमतिं कुणसु दंडितो मि त्ति । 'इस कार्य से दंड ही तो मिलेगा', ऐसा सोचकर पाप मत करो। (गा. ५६२) जीहाए विलिहतो, न भद्दओ जत्थ सारणा नथि । दंडेण वि ता.तो, स भद्दओ सारणा जत्थ ।। जहां सारणा नहीं है, वहां मीठे वचनों से क्या ? जहां सारणा है, वहां दंड-प्रहार भी श्रेयस्कर है। (गा. ५६६) अजेण भव्वेण वियाणएण, धम्मप्पतिण्णेण अलीयभीरुणा । सीलंकुलाचारसमन्नितेण, तेणं समं वाद समायरेज्जा।। जहां वाद करने का प्रसंग हो वहां इनके साथ वाद करो-आर्य, भव्य, वादविज्ञ, धर्मप्रतिज्ञ, अलीकभीरू, शीलवान् और कुलीन। (गा. ७१२) अत्थवतिणा निवतिणा, पखवता बलवया पयंडेण। गुरुणा नीएण तवस्सिणा य सह वज्जए वादं।। इनके साथ वाद मत करो–अर्थपति, नृपति, पक्षपाती, बलवान्, प्रचण्ड, गुरु, नीच तथा तपस्वी।। (गा. ७१५) दुक्करं खु वेरग्गं। वैराग्य दुष्कर है। (गा. ७६१) होति दुक्खं खु वेरग्गं। वैराग्य की प्राप्ति कष्टसाध्य है। (गा. ७६२) सम्मत्तं मइलेत्ता, ते दुग्गतिवडगा होति।। जो सम्यक्त्व को मलिन करता है, वह दुर्गति को बढ़ाता है। (गा. ८७२) धित्तेसिं गामनगराणं, जेसिं इत्थी पणायिगा। उस नगर और गांव को धिक्कार है, जहां स्त्री नायक होती है। (गा. ६३५) ते यावि धिक्कया पुरिसा, जे इत्थीणं वसंगता। वे पुरुष भी धिक्कार के पात्र हैं, जो स्त्रियों के वशवर्ती हैं। (गा. ६३५) इत्थीओ बलवं जत्थ, गामेसु नगरेसु वा। सो गाम नगरं वापि, खिप्पमेव विणस्सति।। जिस गांव और नगर में स्त्रियों का प्रभुत्व होता है, वह गांव और नगर शीघ्र नष्ट हो जाता है। . (गा. ६३६) मरिउं ससल्लमरणं, संसाराडविमहाकडिल्लम्मि । सुचिरं भमंति जीवा, अणोरपारम्मि ओतिण्णा।।' जो जीव सशल्य मरते हैं, वे इस अनन्त संसार में अनन्तकाल तक जन्म-मरण करते हैं। (गा. १०२२) उतना Jain Education International For Private & Personal Use Only: www.jainelibrary.org
SR No.002531
Book TitleAgam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra Bhashya
Original Sutra AuthorSanghdas Gani
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages860
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vyavahara
File Size14 MB
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