________________
१५०]
परिशिष्ट-८
हूं। अमात्य डरा और दही का घड़ा उठाकर चला। कुमार उसको लेकर राजा के पास गया। राजा ने सोचा, यह कुमार शक्तिशाली है। उसका राज्याभिषेक कर दिया।
(गा. १६६४ टी. प. ४६) ६१. पुत्र का राज्याभिषेक
एक राजा था। उसका नाम था दंडिक। उसका राज्य चला गया। तब वह अपने पुत्र के साथ एक अन्य राजा के आश्रय में रहने लगा। वह राजा उस पुत्र के प्रति अतीव आकृष्ट हो गया। उसने उसका राज्याभिषेक करना चाहा। क्या उसका पिता उसे अनुमति नहीं देगा ? अवश्य ही वह पिता अपने पुत्र के राजा बनने पर बहुत प्रसन्न होगा।
(गा. २०४६ टी.प.६०) ६२. प्रमाद से हानि
एक अजापालक था। वह अजाओं की रक्षा करता था। उसने वट्टग-गोली आदि खेलने के प्रमाद से सारी अजाओं का नाश कर डाला। उसे भान हुआ। वह दूसरी बार बोला-अब मैं ऐसा प्रमाद नहीं करूंगा। अब उसे यावजीवन वह कार्य नहीं मिल सकेगा।
एक अजारक्षक शूल,ज्वर आदि से ग्रस्त हो गया। अजाएं सारी नष्ट हो गईं। परंतु दुवारा उसे अजारक्षक का भार मिल सकता है। प्रमादी को नहीं।
(गा. २३२३ टी. प. ६) ६३. वैद्य का प्रमाद
___ एक वैद्य था। वह राजा के यहां नियुक्त था। वह द्यूत और विषय-प्रमाद में अनुरक्त था। उसने वैद्य-विद्या का नाश कर डाला। जो वैद्यक शास्त्र तथा कोश आदि प्रच्छन्न थे, गुप्त रखे हुए थे, वे कीड़ों द्वारा काट डाले गए। एक बार राजा को वैद्य की आवश्यकता हुई। उसने वैद्य को बुलाया। वह क्रिया करने में समर्थ नहीं था। राजा ने पूछा-ऐसा क्यों ? उसने कहा-राजन् ! मेरे सारे वैद्यक शास्त्र चोरों ने चुरा लिये। मेरे पास ‘पाडिपुच्छग' -सहायक भी नहीं है। इसलिए मेरे सारे वैद्यक ग्रन्थ नष्ट हो गए। मेरा ऐसा कोई प्रमाद नहीं है कि जिससे वैद्यक शास्त्रों का नाश हो। तब राजा ने राजपुरुषों को भेजा और कहा—यदि इसके शास्त्र नष्ट हो गए हों तो तुम शास्त्रकोश को देखो। वे गए, शास्त्रकोश को लाकर राजा को समर्पित कर दिया। राजा ने देखा कि उसमें सारी पुस्तकें कीड़ों द्वारा काटी हुई हैं। राजा ने तब जान लिया कि वैद्य के द्यत आदि के प्रमाद से सारे वैद्यक ग्रन्थ नष्ट हए हैं। राजा ने उसे निकाल दिया। वह वैद्य अन्यत्र गया और वैद्यक शास्त्रों का पुनः उज्जीवन कर राजा के समीप आया और पुनः नियुक्ति की याचना की। राजा ने मनाही कर दी।
(गा. २३२४ टी. प. ६) ६४. अभ्यास के बिना विद्या को जंग
एक योद्धा अपने गुरु के पास धनुर्वेद सीख रहा था। उसका अभ्यास इतना गहरा हो गया था कि लक्ष्य को देखे बिना ही शब्द के आधार पर उसको बाण से बींध डालता था। राजा ने उसे प्रचूर वेतन पर रख विषय-प्रमाद में फंस गया। इससे उसकी धनुर्वेद विद्या और अभ्यास का अन्त आ गया, सभी नष्ट हो गए। युद्ध का प्रसंग उपस्थित हुआ। रण में वह योद्धा न कुछ बींध सका और न शत्रु सेना को पराजित कर सका। राजा ने पूछा- ऐसा क्यों हुआ ? उसने कहा—मेरा कोई प्रमाद नहीं है। तब राजा ने कहा-यदि प्रमाद न करने पर भी यह शब्दभेदी विद्या से चूक गया है तो इसके तरकश में तीरों को देखो कि वे सारे तीर मूलरूप में हैं अथवा जंग से नष्ट हो गए हैं ? यह भी देखो कि इसका धनुष्य टूटा हुआ है या अखंड है। राजपुरुषों ने देखा। उसके सारे तीर जंगयुक्त थे, धनुष्य भी टूट गया था। राजा ने जान लिया कि यह सारा प्रमाद के कारण हुआ है। उसकी वृत्ति का छेद कर डाला। वह अन्यत्र गया और पुनः धनुर्विद्या का अभ्यास कर लौटा। किंतु राजा ने उसे नियुक्ति नहीं दी।
(गा. २३२५ टी.प. ७)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org