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________________ १४६] परिशिष्ट-८ ऋतुकाल के औचित्य के अनुसार वे अपनी-अपनी महिलाओं के पास एक बार गए और संभोग से बीज-वपन किया। कालावधि के परिपाक होने पर पांचों महिलाओं ने एक-एक पत्र का प्रसव किया। जब वे बालक युवा हए तब अपने-अपने स्थान पर उनकी नियुक्ति कर वे पांचों व्यक्ति प्रव्रजित होने के लिए उद्यत हुए। आचार्य ने उन्हें उचित प्रायश्चित्त देकर प्रव्रजित कर दिया। (गा. १५४६-१५५२ पत्र ४०, ४१) ७६. व्यस्तता : अपाय-वर्जन का उपाय एक सेठ था। उसका पुत्र धनार्जन करने परदेश गया। उसकी पत्नी घर पर ही रही। वह निरंतर प्रसाधन में रत रहती। अच्छा भोजन करना, तंबोल चबाना, विलेपन आदि करना इनमें ही प्रवृत्त रहती थी। घर का काम-काज नहीं करती, निठल्ली बैठी रहती। वह उन्मत्त हो गई। उसने अपनी दासी से कहा—किसी पुरुष को ले आओ। दासी ने सेठ से कहा। सेठ ने सोचा, यह कुमार्ग पर न जाए इसलिए उपाय करना चाहिए। सेठ घर गया। उसने सेठानी से कहा- तुम मेरे से कलह कर पीहर चली जाओ। फिर बहू स्वयं घर का काम करेगी, अन्यथा यह कुमार्ग में चली जाएगी। दूसरे दिन सेठ घर आया । सेठानी से भोजन की थाली परोसने के लिए कहा। सेठानी ने भोजन नहीं परोसा । सेठ ने बहुत कलह किया और सेठानी को घर से निकाल दिया। पुत्रवधू कलह का शब्द सुनकर दौड़ी-दौड़ी वहां आई। सेठ ने कहा-वधूरानी ! अब तू ही घर की मालकिन है, सेठानी कौन होती है ? अब आज से तुझे ही सारे घर का कामकाज करना है। पुत्रवधू वैसा ही करने लगी। घर-व्यापार में व्यापत होने के कारण वह भोजन भी समय पर नहीं कर पाती थी। मंडन और प्रसाधन की तो बात ही क्या? दासी ने आकर वधूरानी से कहा- आपने पुरुष लाने के लिए कहा था। वह आया हुआ है। आप कब मिलेंगी? उसने कहा-मरने की भी फुरसत नहीं है तब फिर पुरुष के संगम के लिए कहां अवकाश है? (गा. १६०१ टी.प.५२) ८०. प्रमादी अजापालक कछेक तीर्थयात्री गंगा की यात्रा पर जा रहे थे। एक अजापालक ने पूछा-कहां जा रहे हैं ? उन्होंने कहा-हम गंगा-यात्रा पर निकले हुए हैं। उसने कहा-मैं भी यात्रा पर चलूंगा। वह बकरियां वहीं छोड़कर उन यात्रियों के साथ चल पड़ा। उन बकरियों को स्वतंत्र रूप से चरते देखकर कुछेक बकरियों को हिंस्र पशुओं ने मार डाला, कुछेक को चोर उठा ले गए और कुछ इधर-उधर चली गईं। वह अजापालक गंगा में स्नान कर लौटा और बकरियों के स्वामियों के पास जाकर बोला—मैं आ गया हूं। आपकी बकरियों को मैं चराता रहा हूं। पुनः वही काम करने का इच्छुक हूं। बकरियों के स्वामियों ने उसको बांधकर कहा -लाओ, हमारी बकरियों का मूल्य । सारी बकरियां नष्ट हो गईं। उसको मूल्य चुकाना पड़ा। उसको अजारक्षक के रूप में पुनः रखने के लिए उन्होंने इन्कार कर दिया। (गा. १६१२, १६१३ टी. प.५५) ८१. बुद्धिमान् अजापालक एक अजापालक था। उसने कार्पटिक आदि व्यक्तियों को तीर्थयात्रा में जाते देखा। उसने पूछा -आप सब कहां जा रहे हैं ? हम गंगा की यात्रा करने निकले हैं। उस अजापालक का मन भी गंगायात्रा के लिए उत्सुक हुआ। उसने सारी अजाओं को उन-उन मालिकों को सौंप दिया अथवा अपने स्थान पर दूसरे अजापालक की व्यवस्था कर गंगा-यात्रा पर निकला। वह गंगा-नान कर लौटा और अजास्वामियों ने पुनः उसे अजारक्षक के रूप में नियुक्त कर दिया। (गा. १६१२, १६१३ टी. प.५५) ५२. प्रमादी भंडारी एक सेठ ने अपने भंडार की रक्षा के लिए एक व्यक्ति को नियुक्त किया। एक बार उसने तीर्थयात्रियों को देखकर पूछा-आप सब कहां जा रहे हैं ? उन्होंने कहा-हम गंगा की यात्रा पर जा रहे हैं। वह भंडारी भी सेठ को बिना पूछे ही उनके साथ गंगा-यात्रा पर प्रस्थित हो गया। लोगों ने श्रीघर (भंडारगृह) को सूना देखकर लूट लिया। वह भंडारी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002531
Book TitleAgam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra Bhashya
Original Sutra AuthorSanghdas Gani
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages860
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vyavahara
File Size14 MB
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