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________________ व्यवहार भाष्य : एक अनुशीलन [७ आसक्ति एवं विरक्ति ही बंध एवं मोक्ष का प्रमाण है, विषय नहीं। प्रायश्चित्त की प्राप्ति में भी आंतरिक परिणाम ही अधिक प्रमाण बनते हैं, इन्द्रियों के अर्थ नहीं। इसीलिए समान रूप से विषय सेवन करने पर भी एक व्यक्ति प्रायश्चित्त का भागी होता है और दूसरा नहीं होता। सापेक्षता अनेकान्त का प्राण है। निरपेक्षता सत्य को एकांगी बना देती है। सापेक्षता द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव के अनुसार व्यवहार करने का विवेक जागृत करती है। दो व्यक्ति समान रोग से अभिभूत हैं। उनमें जो शरीर से बलवान् है, उसे वमन-विरेचन आदि कर्कश क्रिया करवाई जा सकती है किंतु जो दुर्बल है उसे मृदु क्रिया द्वारा स्वास्थ्य लाभ करवाया जाता है। वैसे ही जो धृति एवं संहनन से युक्त है उसे परिहार तप भी दिया जा सकता है किंतु जो धृति, संहनन आदि से हीन है, उसे सामान्य तप का प्रायश्चित्त दिया जाता है। इस संदर्भ में भाष्यकार ने दो आचार्यों का उल्लेख किया है-सापेक्ष एवं निरपेक्ष । निरपेक्ष आचार्य परिस्थिति को समझे बिना अपराध के आधार पर प्रायश्चित्त देते हैं। उसको सहने में असमर्थ मुनि कभी संयम से तथा कभी जीवन से हाथ धो बैठते हैं। इससे संघ छिन्न-भिन्न हो जाता है। निरपेक्ष आचार्य के पास कोई रहना नहीं चाहता अतः तीर्थ का विच्छेद हो जाता है। सापेक्ष आचार्य जानते हैं कि केवल अपराध प्रायश्चित्त की तुला नहीं हो सकता। प्रायश्चित्त उतना ही दिया जाना चाहिए, जितना प्रतिसेवक वहन कर सके। अतः वे दोषों के अनवस्था प्रसंग के निवारण में कुशल होते हैं। वे चारित्र की रक्षा एवं तीर्थ की अव्युच्छित्ति में निमित्तभूत बनते हैं। वे करुणा और अनुग्रह की भावना से भावित होते हैं। वे देखते हैं कि प्रतिसेवी दीर्घ तपस्यामय प्रायश्चित्त को वहन करने में समर्थ नहीं है तो उसके समक्ष नानाविध विकल्प प्रस्तुत करते हैं और सामर्थ्य के अनुसार तपोवहन की यथार्थता बताते हैं। जैसे किसी प्रतिसेवी को पांच उपवास, पांच आयंबिल, पांच एकासन, पांच पुरिमड्ढ़ तथा पांच निर्विकृतिक-ये पांच कल्याणक प्रायश्चित्त स्वरूप आए हों तो उस प्रतिसेवी मुनि के समक्ष नानाविध विकल्प प्रस्तुत करते हैं और यथासामर्थ्य विकल्प को वहन करने की बात कहते हैं। इन पांच कल्याणकों को करने में असमर्थ मुनि को चार, तीन, दो, एक कल्याणक करने को कहते हैं। वह भी नहीं कर सकने पर उसे अंत में एक निर्विकृतिक करने की बात कहते हैं। इस उपक्रम से मुनि की विशुद्धि हो जाती है और वह संयम में स्थिर हो जाता है। उपाय के अभाव में प्रतिसेवी विशोधि को भूलकर और अधिक मलिन हो जाता है। वह संघ-विद्रोही बन जाता है। इस प्रसंग में भाष्यकार ने सापेक्ष एवं निरपेक्ष धनिक का दृष्टान्त प्रस्तुत किया है। सापेक्ष धनिक निर्धन व्यक्ति को उधार दिया हुआ धन भी उपाय से प्राप्त कर लेता है। लेकिन निरपेक्ष धनिक स्वयं की, धन की तथा ऋण लेने वाले तीनों की हानि कर देता है। उपाय से विशोधि के प्रसंग में भाष्यकार ने वृषभ का दृष्टान्त प्रस्तुत किया है। वृषभ के खेत में घुसने पर यदि खेत का स्वामी उचित उपाय नहीं करता तो वृषभ पूरे खेत को रौंद डालता के साथ उचित उपाय करता है तो वह वषभ को खेत से बाहर निकालकर खेत की रक्षा कर सकता है। इसी प्रकार आचार्य प्रतिसेवी की विशोधि यदि उचित उपायों द्वारा करते हैं तो वे व्यक्ति के संयम को बचा लेते हैं और जो ऐसा नहीं कर पाते वे गुरु हानि में रहते हैं। प्रतिसेवी जब अपराधों की आलोचना के लिए गुरु के समक्ष उपस्थित होता है, उस समय यदि आचार्य उसको प्रोत्साहित करे कि तुम धन्य हो, कृतपुण्य हो क्योंकि तुमने गुप्त अपराधों को प्रकट करने का उत्कट साहस किया है। जो सूक्ष्मतम अपराध की आलोचना करता है, वह धन्य-धन्य है। यह सुनकर आलोचक प्रसन्न होकर ऋजता से अपनी सभी स्खलनाओं एवं अपराधों को प्रकट कर देता है। आलोचना के समय आचार्य उसको प्रताड़ित करे या तर्जना दे कि तुम सदा स्खलना करते ही रहते हो, तुम ऐसे हो, वैसे हो आदि तो व्यक्ति चाहते हुए भी सम्यक् आलोचना नहीं कर पाता और वह अपने दोषों को छिपा लेता है। कभी-कभी असह्य [ से कपित होकर वह आचार्य का घात भी कर सकता है तथा कलह की उदभावना कर संघ में असमाधि उत्पन्न कर सकता है क्योंकि कुपित व्यक्ति के लिए कुछ भी असंभव नहीं होता। सापेक्ष-निरपेक्ष व्यवहार के संदर्भ में भाष्यकार ने भिक्षणी, १. व्यभा. १०२८ १०२६ टी. प. १५ । २. व्यभा.५४४,५४५। ३. व्यभा. ४२०२। ४. व्यभा-४२०३-४२०८। ५. व्यभा ४१८७-४२०१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002531
Book TitleAgam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra Bhashya
Original Sutra AuthorSanghdas Gani
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages860
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vyavahara
File Size14 MB
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