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________________ १३८ ] ५३. युक्ति से लाभ खेतों में शाली बोई गई । खेत के स्वामी ने चारों ओर बाड़ लगा दी, आने-जाने के लिए एक द्वार रखा, एक बार एक सांड उस द्वार से खेत में घुस गया। इतने में ही खेत का स्वामी वहां आ पहुंचा। वृषभ को खेत में देखकर उसने द्वार बंद कर दिया और फिर लकड़ी, बाण आदि से वृषभ को परितप्त करने लगा, प्रहारों से घबराकर वृषभ खेत में इधर-उधर दौड़ने लगा, उसके इस प्रकार दौड़ने से जो शालि के अंकुर रौंदे नहीं गए थे, वे भी सारे रौंद डाले गए और इस प्रकार सारा खेत ही नष्ट हो गया । (गा. १०४५ टी. प. २०) परिशिष्ट-८ ५४. सूझबूझ एक-दूसरे व्यक्ति के भी शालि का खेत था। वृषभ खेत में घुस गया। स्वामी ने देख लिया। वह खेत की बाड़ के द्वार पर बैठकर शब्द करने लगा। वह वृषभ शब्द से भयभीत होकर द्वार की ओर भागा। तब मालिक ने पत्थर फेंककर प्रहार किया। वृषभ उस द्वार से बाहर निकल गया। उसका खेत वृषभ के पैरों से रौंदा नहीं गया। (गा. १०४५ टी. प. २०) ५५. विक्षिप्तता का कारण जितशत्रु राजा ने स्थविरों के पास दीक्षा ग्रहण कर ली। प्रव्रज्या के अनंतर वह ग्रहणशिक्षा और आसेवन शिक्षा में निपुण हो गया। कालांतर में वह विदेशी नगर पोतनपुर में पहुंचा। वहां पर तीर्थिकों के साथ वाद किया। उनको पराजित कर देने पर जिन - शासन की प्रतिष्ठा हुई। मुनि उसी नगरी में निर्वाण को प्राप्त हो गए। जितशत्रु राजा का एक छोटा भाई था । वह भी अपना राज्य त्यागकर बड़े भाई की प्रव्रज्या के कुछ वर्षों बाद, प्रव्रजित हो गया। जब उसने सुना कि ज्येष्ठ भ्राता मुनि पोतनपुर में निर्वाण को प्राप्त हो गए हैं, वह विक्षिप्त हो गया । (गा. १०८१, १०८२ टी. प. २८) ५६. अति हर्ष : पागलपन का कारण गोदावरी नदी-तट पर प्रतिष्ठान नाम का नगर था। वहां शातवाहन नाम का राजा राज्य करता था । उसके मंत्री का नाम था खरडक। एक बार राजा ने अपने दंडनायक को बुलाया और कहा— जाओ, मथुरा नगरी को हस्तगत कर शीघ्र लौट आओ। वह शीघ्रता के कारण और कुछ जानकारी किए बिना ही अपने सैनिकों के साथ चल पड़ा। रास्ते में उसने सोचा, मथुरा नाम के दो नगर हैं। एक है दक्षिण मथुरा और दूसरा है उत्तर मथुरा। किस नगर को हस्तगत करना है ? उस राजा की आज्ञा बहुत कठोर होती थी। उससे पुनः पूछना संभव नहीं था । तब उस दंडनायक ने अपनी सेना को दो भागों में बांट दिया। सैनिकों की एक टुकड़ी दक्षिण मथुरा की ओर गई और दूसरी टुकड़ी उत्तर मथुरा की ओर। दोनों नगरों पर सैनिकों का अधिकार हो गया । तब सैनिकों ने दंडनायक के पास शुभ समाचार प्रेषित किया। दंडनायक स्वयं राजा के पास आकर बोला – देव ! हमने दोनों नगरों पर अधिकार कर लिया है। इतने में ही अंतःपुर से एक दूती ने आकर राजा को वर्धापित करते हुए कहा — राजन् ! पट्टदेवी ने पुत्ररत्न को जन्म दिया है। एक अन्य सदस्य ने आकर कहा— देव ! अमुक प्रदेश में विपुल निधियां प्राप्त हुई हैं। इस प्रकार एक के बाद एक शुभ संवादों से राजा का हृदय हर्षातिरेक से आप्लावित हो गया। वह परवश हो गया। उस अति हर्ष को धारण करने में असमर्थ राजा अपनी शय्या को पीटने लगा, खंभों को आहत करने लगा, भींत को तोड़ने लगा तथा अनेक असमंजसपूर्ण प्रलाप करने लगा । तब अमात्य खडक राजा को प्रतिबोधित करने के लिए स्वयं खंभों को, भींत को फोड़ने लगा। राजा ने पूछा- ये सारी चीजें किसने नष्ट की है ? अमात्य बोला – आपने । राजा ने कहा - तुम मेरे समक्ष झूठ बोल रहे हो। ऐसा कहकर कुपित होकर राजा ने अमात्य को पैरों से ताडित किया । अमात्य मूर्च्छित होकर भूमि पर गिर पड़ा। इतने में ही उसके द्वारा पूर्व निर्दिष्ट पुरुष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002531
Book TitleAgam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra Bhashya
Original Sutra AuthorSanghdas Gani
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages860
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vyavahara
File Size14 MB
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