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________________ परिशिष्ट [१३७ को ले जाता और ले आता। रास्ते में धान बाए हए अनेक खेत आते थे। मार्ग से आती-जाती गाएं उन बोए हए धान के पौधों को खा लेतीं। गोरक्षक उनका निवारण करता, फिर भी वे इधर-उधर मुंह मारकर खा लेतीं। उस स्थिति में खेतों के स्वामी गायों का निग्रह कर, खेतों में हुई हानि के लिए हर्जाना मांगते। राज्य के अधीनस्थ खेतों की भी हानि होती। राज्य-रक्षक हर्जाना मांगते। वह अज्ञानी गोरक्षक गायों को चराने के लिए जंगल में जाता। वहां भील आदि लोग गायों को मार डालते। वह गायों को पानी पिलाने के लिए नदी आदि पर ले जाता। वहां नदी में विद्यमान जलचर प्राणी गायों को घसीटकर ले जाते। वह सघन जंगल में गाएं ले जाता। वहां हिंस्र पशु गायों को भयभीत करते, मार डालते । वह गायों को निकुंजों में ले जाता। वहां चोर गायों का अपहरण कर ले जाते। इस प्रकार वह अज्ञानी गोरक्षक गायों का विनाश कर देता। जो जानकार था वह स्वयं विपदाओं के सारे स्थानों का वर्जन करता और जो उसकी निश्रा में कार्यरत था उसे भी आपदाओं के स्थानों का वर्जन कराता। (गा. १००० टी. प. ७, ८) ४६. सांप ने डस लिया एक व्यक्ति ने नगर में जाने के लिए घर से प्रस्थान किया। दूसरे लोगों ने उसे मनाही करते हुए कहा —तुम इस मार्ग से मत जाओ, रास्ते में सांप है। वह दौड़कर डस लेता है। उसने कहा-मैं भाग जाऊंगा। सर्प मुझे नहीं पकड़ पाएगा। वह उसी मार्ग से चला। सर्प ने उसे देखा और पीछे दौड़ा। वह मनुष्य भी तीव्रता से भागा। भागते-भागते उसके पैर में कांटा चुभा और वह वहीं रुक गया। दौड़ता हुआ सर्प आया, उसे डसा। डसते ही वह मर गया। (गा.१०२१ टी. प. १३) ५०. हरिण की बुद्धिमत्ता ग्रीष्म ऋतु । प्यास से आकुल-व्याकुल एक मृग पानी की टोह करने लगा। एक सरोवर के पास उसने देखा कि एक व्याध धनुष-बाण लिये बैठा है। मृग ने सोचा, यदि मैं पानी नहीं पीऊँगा तो शीघ्र ही मर जाऊंगा। पानी पीने के बाद सुखपूर्वक तो मरूंगा और संभव है पानी पीने के बाद शारीरिक शक्ति के संवर्धन से मैं पलायन भी कर जाऊं। यह सोचकर वह मृग दूसरी ओर गया और शीघ्रता से पानी पीने लगा। जब तक कि व्याध उस स्थान तक पहुंचे तब तक मृग लंबी छलांगें भरता हुआ भाग गया। (गा. १०३८-१०४० टी. प. १८) ५१. योद्धाओं का प्रतिशोध एक राजा था। वह शत्रु-सेना से अभिभूत हो गया। उसने योद्धाओं को लड़ने के लिए आदेश दिया। वे योद्धा युद्ध करते-करते शत्रु-सैनिकों के प्रहारों से प्रताड़ित होकर पलायन कर गए। वे पलायन कर अपने राजा के पास आए। राजा ने वचन-प्रहारों से उनकी ताड़ना करते हुए कहा—तुम सब मेरे यहां आजीविका कमा रहे हो, फिर प्रहारों से भयभीत होकर क्यों लौट आए ? तब उन योद्धाओं ने सोचा-हम शत्रु-सैनिकों का पराभव करने में समर्थ नहीं हैं। युद्ध करते हुए आयुधों के प्रहारों से भयभीत होकर संग्राम से हम यहां आ गए। यहां भी वचन-बाणों के प्रहार तथा बंधन, मृत्यु आदि का सामना करना पड़ रहा है। हमने अपने आपको युद्ध में क्यों नहीं समाप्त कर दिया ? यह सोचकर खिन्न होते हुए उन्होंने राजा को बांधकर शत्रु-राजा को सौंप दिया, क्योंकि उनके मन में प्रतिशोध जाग गया था। (गा. १०४२, १०४३ टी. प. १६) ५२. प्रोत्साहन का चमत्कार एक राजा शत्रुसेना से अभिभूत हो गया। उसने अपने योद्धाओं को पुनः युद्ध में भेजा। वे योद्धा शत्रुसेना के प्रहारों से छिन्न-भिन्न होकर अपने राजा के पास आ गये। तब राजा ने उन्हें नामग्राहपूर्वक संबोधित किया। उनके गोत्र, अन्वय तथा पूर्व कार्यों की स्मृति कर उनकी प्रशंसा की। वे योद्धा उस प्रशंसा-सत्कार से प्रहारों से लगे अपने घावों को भूल गए और फिर स्वस्थ होकर प्रबल शत्रसेना पर विजय प्राप्त कर ली। (गा. १०४२, १०४३ टी.प. १६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002531
Book TitleAgam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra Bhashya
Original Sutra AuthorSanghdas Gani
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages860
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vyavahara
File Size14 MB
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