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________________ १३६] परिशिष्ट ४५. पिता की संपत्ति के हकदार एक किसान था। उसके तीन पुत्र थे। तीनों कृषिकर्म करते थे। एक पुत्र कृषिकर्म यथावत् करता था। दूसरा पुत्र वन में जाता और एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमता रहता और तीसरा पुत्र देवमंदिरों में जाता रहता था। कालांतर में उनके पिता की मृत्यु हो गई। अब तीनों ने पिता की संपत्ति को बराबर बांटकर ले ली। इस प्रकार एक पुत्र द्वारा अर्जित संपत्ति तीनों ने बराबर बांट ली। (गा. ८२६, ८३० टी. प. १०५) ४६. कौन कितना अपराधी ? एक राजा था। उसके नगर को घेरने के लिए दूसरा राजा, अपनी सैन्य शक्ति के साथ आ रहा था। यह बात सुनकर नगर-स्वामी ने अपने सुभटों को युद्ध करने भेजा। उन सुभटों में से एक सुभट शत्रुसेना के विस्तार को देखते ही भागकर अपने स्थान पर आ गया। दूसरे सुभट ने लंबे समय तक युद्ध किया। उसका शरीर घायल हो गया। फिर वह भी भागकर आ गया। तीसरा सुभट युद्ध में लड़ा, घायल नहीं हुआ, फिर भी दौड़कर आ गया। तीनों सुभटों में पहला सुभट घोर अपराधी है, दूसरा और तीसरा सुभट उससे कम अपराधी है। (गा. ८२६, ८३० टी. प. १०५) ४७. नारी के परवश एक राजा था। उसकी रानी और पुरोहित की पत्नी—दोनों सगी बहनें थीं। एक बार राजपली ने कहा-राजा मेरे वश में है। पुरोहित की पत्नी बोली-पुरोहित मेरे वश में है। दोनों ने परीक्षा करने का निश्चय किया। एक बार पुरोहित पत्नी ने राजपली, जो बहिन थी, को भोजन के लिए निमंत्रित किया। रात में पुरोहित-पत्नी ने पुरोहित से कहा- मैंने एक प्रण किया था कि यदि अमुक कार्य संपन्न हो जाएगा तो मैं अपनी भगिनी के साथ तुम्हारे सिर पर थाली रखकर भोजन करूंगी। मेरा वह प्रण पूरा हो गया। अब मैं तुम्हारा अनुग्रह चाहती हूं। पुरोहित बोला-जैसी तुम्हारी इच्छा। मेरा अनुग्रह है। राजपत्नी ने राजा से कहा-आज रात को मैं तुम्हारी पीठ पर सवार होकर पुरोहित के घर जाना चाहती हूं। राजा बोला—मेरे पर अनुग्रह होगा। वह रात में राजा की पीठ पर पलाण रखकर उस पर सवार हुई। वह पुरोहित के घर पहुंचकर, यह मेरा वाहन है, यह सोचकर उसे एक खंभे से बांध दिया। फिर दोनों बहिनों ने पुरोहित के सिर पर थाली रखकर भोजन किया। खंभे से बंधा हुआ राजा अश्व की भांति हिनहिनाने लगा। भोजन कर चुकने पर रानी पुनः राजा की पीठ पर सवार होकर चली गई। राजा ने यह सोचा कि पुरोहित के द्वारा मैं अपमानित और तिरस्कृत हुआ हूं, उसने उसको मुंडित करा दिया। अमात्य को इस वृत्तांत का पता चला। उसने राजा और पुरोहित दोनों को बुरा-भला कहा। . (गा. ६३२ टी. प. १३०) ४८. अपायों का वर्जन : सुरक्षा का कवच एक गो-रक्षक नगर की गायों को चराने के लिए ले जाता था। वह जानकार था। खेतों का बचाव करता हुआ वह गायों को ले जाता और लाता था। वह उनको ऐसे स्थान पर चराता जहां चोरों का भय न हो। एक बार दो अन्य व्यक्ति आए और बोले-हम गायों की रक्षा करेंगे। तब नागरिकों ने सोचा, इतनी गायों की रक्षा एक व्यक्ति कर नहीं सकता। इसलिए गायों को बांटकर तीन रक्षकों को दे दी जाए। उन्होंने उन दोनों व्यक्तियों को गो-रक्षक के रूप में रख लिया। उन दोनों में से एक रक्षक पहले गोरक्षक की निश्रा में गायों को ले जाने-लाने लगा। मैं अजान हूं—यह सोचकर वह उसी के मार्ग से आने-जाने लगा। दूसरे गो-रक्षक ने सोचा-मैं दूसरे व्यक्ति की निश्रा में अपनी गाएं क्यों चराऊ जबकि मैं स्वयं स्वतंत्र रूप से चराने में समर्थ हूं। किंतु वह मूर्ख रास्तों से अजान था। वह गोचारी के स्थानों को भी नहीं जानता था। खेतों से संकीर्ण प्रदेशों तथा नगर के प्रवेश और निर्गमन योग्य मार्गों से वह सर्वथा अनभिज्ञ था। वह उन्हीं मार्गों से गायों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002531
Book TitleAgam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra Bhashya
Original Sutra AuthorSanghdas Gani
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages860
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vyavahara
File Size14 MB
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