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________________ १३४ ] परिशिष्ट ३६. जागरूक संरक्षक ___अंतःपुर के एक दूसरे संरक्षक ने एक बार देखा कि एक राजकुमारी गवाक्ष में बैठी देख रही है। उसने उसको अपने पास बुलाकर विनयपूर्वक शिक्षा देते हुए गवाक्ष में न बैठने के लिए कहा। शेष कन्याओं को भी निषेध कर दिया। सब में भय व्याप्त हो गया। उस दिन के पश्चात् किसी भी कन्या ने गवाक्ष में आने का साहस नहीं किया। धूर्तों के द्वारा कन्याओं के अपहरण का भय नहीं रहा। राजा ने यह कहकर अंतःपुर पालक का सम्मान किया कि उसने अन्तःपुर का सम्यक् संरक्षण किया है। (गा. ६६७, ६६८ टी. प. ६४) ४०. नंदवंश का समग्र उच्छेद चाणक्य ने नंद राजा को राज्यच्युत कर चंद्रगुप्त का राज्याभिषेक किया और नंद के सामन्तों को तिरस्कृत कर पदच्युत कर दिया। वे सभी सामंत अपनी आजीविका में बाधा उपस्थित जानकर चंद्रगुप्त के आरक्षकों से सांठ-गांठ कर नगर में सेंध आदि लगाकर चोरी करने लगे। चाणक्य को नगर में होनेवाली चोरी की वारदातें ज्ञात हुईं। उसने दूसरे आरक्षकों की नियुक्ति कर दी। वे सामंत इनसे भी सांठ-गांठ कर पूर्ववत् चोरी करने लगे। चाणक्य ने सोचा, ऐसा कौन आरक्षक मिलेगा जो इन चोरों के साथ न मिलकर सभी चोरों को पकड़वा सके। अब चाणक्य प्रतिदिन परिव्राजक का वेश बनाकर नगर के बाहर घूमने लगा। एक दिन उसने देखा, तंतुवायशाला में नलदाम नामक तंतुवाय बैठा है। उस समय उसका पुत्र खेल रहा था। एक मकोड़े ने उसे काट खाया। वह रोता हुआ अपने पिता के पास आकर बोला- पिताजी ! मकोड़े ने मुझे काट खाया। नलदाम बोला—मुझे वह स्थान बता, जहाँ मकोड़े ने काटा है ? बालक ने वह स्थान बताया। नलदाम मकोड़े के बिल के पास गया और जो मकोड़े बिल से बाहर निकले हुए थे, उन सबको उसने मार डाला। फिर उसने बिल को खोदा और उसमें जो मकोड़े तथा उनके अंडे थे, उन पर घास डालकर जला डाला। चाणक्य ने यह सब देखकर पूछा-तुमने बिल को खोदकर अंदर आग क्यों लगाई ? नलदाम बोला-'अंडों से मकोड़े पैदा होकर कभी और भी काट सकते हैं।' चाणक्य ने सोचा, यदि इसे कोतवाल के रूप में नियुक्त किया जाए तो यह मकोड़ों के समूल नाश की भांति चोरों का समूल नाश कर पाएगा। चाणक्य ने उसे कोतवाल के रूप में नियुक्त कर दिया। नंद के पक्ष वाले चोरों को यह ज्ञात हुआ। वे नलदाम के पास आए और बोले-हम तुम्हें चोरी के धन का बहुत बड़ा भाग देंगे। तुम हमारी रक्षा करना। नलदाम ने -ठीक है। अब तम सभी चोरों को विश्वास दिलाकर मेरे पास ले आओ। एक दिन सभी चोर नलदाम के पास एकत्रित हुए। नलदाम ने उनका सत्कार-सम्मान किया और दूसरे दिन सभी चोरों के लिए विशाल भोज की तैयारी की। सभी चोर अपने-अपने पुत्रों को साथ ले वहां पहुंचे। नलदाम ने तब अवसर देखकर सभी चोरों तथा उनके पुत्रों का शिरच्छेद करवा डाला। (गा. ७१६ टी. प. ७७) ४१. सहस्रयोधी योद्धा की परीक्षा अवंती जनपद में महाराज प्रद्योत राज्य करते थे। उनके मंत्री का नाम था-खंडकर्ण। एक बार एक योद्धा राजा के समक्ष आकर बोला-राजन् ! मैं सहस्रयोधी हूँ, हजारों योद्धाओं को युद्ध में जीत सकता हूँ। आप मुझे अपनी सेवा में रखें। राजा ने स्वीकृति दे दी। वह बोला – राजन् ! आप जो हजार योद्धाओं को मासिक देते हैं, उतनी राशि मुझे देनी होगी। तब मंत्री खंडकर्ण ने सोचा, मुझे इसकी शक्ति की परीक्षा करनी चाहिए। यदि यह वास्तव में ही सहस्रयोधी होगा तो इसे सहस्रयोधी की सारी सुविधाएं देनी चाहिए। - एक दिन मंत्री ने उसे एक बकरा और मद्य का घड़ा देकर कहा-आज कृष्णा चतुर्दशी है। आज रात को महाकाल नामक श्मशान में जाकर इसे खाना है। वह सहस्रयोधी महाकाल श्मशान में गया, बकरे को मारा और उसके मांस को पकाकर खाने लगा और मदिरा पीने लगा। उस समय ताल-पिशाच वहां आया और मांस के लिए अपना हाथ फैलाकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002531
Book TitleAgam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra Bhashya
Original Sutra AuthorSanghdas Gani
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages860
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vyavahara
File Size14 MB
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