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________________ १३२] परिशिष्ट ठहराने लगे। तब राजा ने कहा-तुम दोनों निरपराधी हो। मुझे यथार्थ बात बताओ। उन्होंने दांतों की पूरी बात बताई। राजा बहुत संतुष्ट हुआ और दोनों को मुक्त कर दिया। (गा. ५१७ टी.प. १७) २७. छोटी त्रुटि की उपेक्षा एक खेत में किसान सारणि से पानी दे रहा था। सारणि के बीच लकड़ी का एक छोटा टुकड़ा फंस गया। किसान ने उसकी परवाह नहीं की। इसी प्रकार अनेक लकड़ियां फंस गईं। उनको न निकालने के कारण प्रभूत कीचड़ हो गया। पानी का आगे बहना बंद हो गया और खेत पानी के अभाव में सूख गया। (गा. ५५५ टी. प.३२) २८. मीठे वचन एक व्याध मांस लेकर यह सोचकर चला कि सारा मांस स्वामी को नहीं देना है। वह स्वामी के पास पहुंचा। स्वामी ने उसका आदर-सत्कार किया, अच्छे शब्दों से उसे संबोधित किया। व्याध ने प्रसन्न होकर सारा मांस दे दिया। (गा. ५८० टी. प. ४०) २६. डांट-फटकार ___ एक व्याध मांस लेकर, यह सोचकर चला कि मुझे सारा मांस स्वामी को देना है। वह उस मांस को छुपाकर ले गया। स्वामी के पास गया। स्वामी ने उसे डांटा-फटकारा। उसने रुष्ट होकर सारा मांस स्वामी को नहीं दिया। (गा. ५८०, ५८१ टी. प. ४०) ३०. पशु भी प्रेम के भूखे ___ एक गाय जंगल में चरकर घर आई। आते ही गृहस्वामी ने उसे पुचकारा और घर में प्रवेश करते समय उसका नामोल्लेखपूर्वक मधुर वाणी में आह्वान किया। प्रसन्नतापूर्वक उसकी पीठ पर हाथ फेरा, धूप जलाकर आलिंगन किया, उसे एक खूटे से बांधकर आगे भूसा आदि खाद्य रख दिया। गाय ने सारे दूध का क्षरण कर दिया। स्वामी को पूरा दूध मिल गया। (गा. ५८०, ५८१ टी. प. ४०) ३१. दूध को छुपा लिया गाय जंगल में चरकर घर आई। स्वामी ने उसको कोई आदर-सम्मान नहीं दिया। उसको (देर से आने के कारण) बांस की लकड़ी से पीटा। गाय ने सारे दूध का क्षरण नहीं किया। दूध को छुपा दिया। (गा. ५८०, ५८१ टी. प. ४०) ३२. भिक्षुणी का हृदय-परिवर्तन एक भिक्षुणी अपने पूर्व परिचित किसी गृहस्थ के घर गई। उसने एकान्त में पड़े भाजन-विशेष को देखा और उसे लेकर अपने स्थान पर चली गई। फिर उसका भाव बदला और उसने सोचा, मैं भाजन गृहस्वामी को लौटा दूं। वह भाजन लेकर चली। गृहस्वामी ने उसका आदर-सम्मान किया। भिक्षुणी ने प्रसन्न होकर वह भाजन लौटा दिया। _ (गा. ५८१ टी. प. ४०, ४१) ३३. कटु व्यवहार का प्रभाव एक भिक्षुणी अपने पूर्व परिचित किसी गृहस्थ के घर गई और एकान्त में पड़े भाजन को लेकर अपने स्थान पर लौट आई। वह भाजन को लौटाना चाहती थी। गृहस्वामी के घर गई। स्वामी ने उसका आदर-सत्कार नहीं किया, उसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002531
Book TitleAgam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra Bhashya
Original Sutra AuthorSanghdas Gani
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages860
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vyavahara
File Size14 MB
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