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________________ १३०] परिशिष्ट-८ एक दिन उस सैनिक-पुत्र ने एक गंजे ठाकुर के सिर पर 'टकोरा' मारा। ठाकुर कुपित हो गया। उसने तत्काल उस सैनिक-पुत्र को पकड़कर मार डाला। (गा. ३३७, ३३८ टी. प. ५२) १६. दोषों का एक साथ प्रकाशन एक नगर में एक रथकार रहता था। उसकी भार्या प्रमादी थी। वह बार-बार भूलें करती। पति को यह ज्ञात नहीं था। एक बार वह घर को खुला छोड़कर अपने सखी के घर चली गई। घर को खुला देखकर कुत्ता भीतर घुस गया। इतने में ही रथकार घर आ पहुंचा। उसने कुत्ते को घर में घूमते देखा। इतने में ही उसकी पत्नी भी सखी के घर से आ गई। रथकार उसे पीटने लगा। पत्नी ने सोचा-आज मेरी भूल पर यह मुझे पीट रहा है। और भी अनेक भूलें मुझसे हुई हैं। उन्हें ज्ञात कर यह मुझे बार-बार पीटेगा। अच्छा है, आज ही मैं इसे अपनी सारी भूलें बता दूं। वह कहने लगी-बछड़े ने गाय को चूंध लिया, बी गंवा दी, कांस्य का बर्तन हाथ से नीचे गिरा और टूट गया, तुम्हारा वस्त्र भी गुम हो गया आदि आदि सारी भूलें उसने बता दी। रथकार ने उसे एक ही बार में पीटकर आगे से प्रमाद न करने की हिदायत दी। (गा. ४४८, ४४६ टी. प. ६२) २०. सारे दंडों का एक में समाहार एक चोर था। उसने अनेक चोरियां कीं। किसी का भाजन चुराया, किसी के वस्त्र, किसी का सोना, किसी की चांदी। एक बार उसने राजमहल में सेंध लगाई और वहां से रन चुराए। आरक्षकों ने उसे पकड़ लिया और राजा के समक्ष उपस्थित किया। वह बात जनता तक पहुंची। उस समय अनेक व्यक्ति राजा के पास आए और शिकायत करने लगे कि चोर ने हमारी अमुक-अमुक वस्तु चुराई है। तब राजा ने यह सोचकर कि इस चोर ने रत्न जैसी बहुमूल्य वस्तु चुराई है। इस एक चोरी में अन्यान्य सारी चोरियां समा जाती हैं। यह गुरुतर चोरी है। राजा ने उसे मृत्युदंड दिया। अन्यान्य चोरियों के सारे दंड इसी एक दंड में समाहित हो गए। (गा. ४५० टी. प.६४) २१. चोर राजा बन गया नगर का राजा मर गया। वह अपुत्र था। राज्यचिंतकों ने राजा के निर्वाचन के लिए एक अश्व और हाथी को अधिवासित कर नगर में छोड़ा। उसी दिन नगर के आरक्षकों ने मूलदेव नामक चोर को पकड़कर राज्य-चिंतकों के समक्ष उपस्थित किया। उन्होंने उसके वध का आदेश दिया। वध से पूर्व चोर को नगर में घुमाया जा रहा था। अधिवासित अश्व ने मूलदेव को देखा। उसके पास आकर वह हिनहिनाने लगा और अपनी पीठ प्रस्तुत की। हाथी भी पास आकर चिंघाड़ने लगा और गंधोदक से उसका अभिषेक किया और उसे अपनी पीठ पर बिठा लिया। वह राजा बन गया। वह चोरी के अपराधों से मुक्त हो गया। (गा. ४५२ टी.प.६४) २२. वणिक् और ब्राह्मण एक वणिक् ने भूमि का उत्खनन किया। उसे निधि प्राप्त हुई। अन्य व्यक्ति ने उसे देख लिया। उसने राजा को इसकी सूचना दी। राजा ने वणिक् को दंडित कर, निधि को अपने पास मंगा लिया। एक दूसरे ब्राह्मण ने भी भूमि का उत्खनन करते समय निधि देखी। उसने तत्काल राजा से निधि-प्राप्ति की सूचना दी। पूरा वृत्तान्त जानकर राजा ने ब्राह्मण का सत्कार-सम्मान किया और दक्षिणा के रूप में सारी नि जो कर्तव्य के प्रति जागरूक रहता है, वह पूजित होता है। (गा. ४५४ टी.प.६५) २३. वणिक् की बुद्धिमत्ता एक वणिक् अपने बीस शकटों को एक ही प्रकार की वस्तुओं से भरकर व्यापारार्थ अन्य नगर में जा रहा था। बीच Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002531
Book TitleAgam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra Bhashya
Original Sutra AuthorSanghdas Gani
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages860
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vyavahara
File Size14 MB
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